Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ के प्रसंग में उन्होंने लिखा है कि वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि के वत्स एवं अभयनन्दि के शिष्य अल्पज्ञानी नेमिचन्द्र ने दर्शनलब्धि और चारित्रलब्धि का कथन किया। इन प्रशस्तियों से सुस्पष्ट है कि नेमिचन्द्र के गुरु अभयनन्दि, वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि थे। अभयनन्दि तो उनके दीक्षा गुरु थे तथा वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि विद्यागुरु थे अथवा ज्येष्ठ गुरुभाई थे। क्योंकि वीरनन्दि ने चन्द्रप्रभचरित में अपने को अभयनन्दि का शिष्य बताया है और नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती भी अभयनन्दि के शिष्य हैं। उम्र एवं ज्ञान में लघुता के कारण नेमिचन्द्र ने अपने गुरुभाइयों से विद्याध्यन किया हो, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अत: उन्हें गुरुभाई के साथ - साथ गुरु भी माना जा सकता है। इन्द्रनन्दि को नेमिचन्द्र ने श्रुतसागर का पारगामी लिखा है तथा उन्होंने लिखा है कि उन्हीं के समीप सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन करके कनकनन्दि आचार्य ने सत्त्व - स्थान का कथन किया है। उसी सत्त्वस्थान का संग्रह नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार कर्मकाण्ड में किया है - वरइंदणंदिगुरुणो पासे सोऊण सयलसिद्धतं। सिरिकणयणंदिगुरुणा सत्तट्ठाणं समुद्दिढ़। ये इन्द्रनन्दि कौन है? इस विषय में निश्चित कुछ भी कहना बड़ा कठिन है। श्री जुगलकिशोर मुख्तार ज्वालामालिनी कल्प के रचयिता इन्द्रनन्दि से इन्हें अभिन्न मानते हैं। क्योंकि ज्वालामालिनीकल्प का रचनाकाल शक सं. 861 (939 ई.) है। ज्वालामालिनीकल्पकार इन्द्रनन्दि ने अपने गुरु का नाम वप्पमंदि कहा है, जबकि प्रकृत इन्द्रनन्दि अभयनन्दि के शिष्य हैं। मुख्तार साहब की संभावना है कि इन्द्रनन्दि ने वप्पनन्दि से दीक्षा ली हो और अभयनन्दि से सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन किया हो। ___ गंगवंशी राजा राचमल्ल के प्रधानमंत्री और सेनापति चामुण्डराय नेमिचन्द्र के शिष्य थे। इन चामुण्डराय ने श्रवणबेलगोला (मैसूर) में विंध्यगिरि पर बाहुबली की 57 फीट उन्नत प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। चामुण्डराय का घर का नाम गोम्मट था। इसी कारण बाहबलि की उक्त मूर्ति गोम्मटेश या गोम्मटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुई। गोम्मट (चामुण्डराय) के लिये नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार ग्रंथ की रचना की थी।11 चामुण्डराय ने चामुण्ड पुराण की रचना शक सं. 900 (978 ई.) में पूर्ण की थी। अजितनाथ पुराण की रचना शक सं. 915 (993 ई.) में पूर्ण की थी। बाहुबलि चरित्र में गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा का समय इस प्रकार कहा गया है - कल्यब्दे षट्शताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे। सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोम्मटेशप्रतिष्ठाम्॥ अर्थात् कल्कि सं. 600 में विभव संवत्सर में चैत्र शुक्ला पंचमी, रविवार को कुंभ लग्न, सौभाग्य योग, मृगशिरा नक्षत्र में चामुण्डराय ने वेल्गुल नगर में गोम्मटेश की प्रतिष्ठा करायी। इस निर्दिष्ट तिथि के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं, परन्तु डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने भारतीय ज्योतिष की गणना के आधार पर विभव संवत्सर चैत्र शुक्ला पंचमी, रविवार को मृगशिर नक्षत्र का योग 13 मार्च सन् 981 में घटित माना है।12 यही नेमिचन्द्र का काल अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120