Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ उनमःयरमात्मने नवंदेकीडतोयवाचिदानंदोएरस्यरोजगज्यैकार मसिहात्मनेनमःणालिने शंकरशीदायरमेष्टासनातनःमिलेट्यः गोविमरजुताव नियंकियानशातपस्याईसमातिस्मंजगवयोटा गोरस्तेनी सुतेतवंडलांचनाशालनरपिसवांत वात्मॉपिवसईगार्य पदोधिनिःकम सशांतिःशांतटावायरमादिमुरवार,सत्यतामांवरलाल लतोपिर्य हामीकृप्तान मिःसनोवसायासंधकारश्चादित्यहिनायनाममा कांदिशाकायला यंततधेयामिश्विीक्षाधीतीशयनमस्मैयस्गांक्षारिणी गावरतीसं विश्विदरितिनंदातीमा गोतमादन्मुिनीनातवालोचोल्लमन्ना जिनवितानंतमाहातविणोम्पदाजबहापेपसिइस्मिना मानहितोमाधिम्सियदंडोम्सारतसंहिताविदेशतिनाम्मानित शोतियेकालासनस्वश्विनीशनिशेयविपर्यायणरणायमालिकस मुनि पद्मनन्दि कृत वर्धमान चरितम् की बूंदी से प्राप्त पांडुलिपि का प्रथम पृष्ठ वालासप्तकरोनतकायोचारन्यायायायाहाणा शतिश्रीवर्तमा नकधावत्रेडिनराचिनतमहात्म्यपदी कमुनिया लिविरविते. मनासुरवनामांधितेचीनमानेनिणिगमननामद्वितीयःपरिछेद बूंदी पांडुलिपि का अन्तिम पृष्ठ 32 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120