Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 35
________________ ॥६॥उनमःसिद्देश्यः स्वछंदकीडतोयत्रविदानंदौपरस्परं जगन काय तसोसिद्धात्मोनमः॥१निनंद्रःशंकरःश्रीदः परमेठीसंदान ल्याउगतोविसरतांवःश्रियंक्रियाताअइतमुत्पद्यापुस्तान सालगत्याचम्यागोमातानोचिःस्वेतंचंद्रलांछनाशीलानर पिसकी तस्मानस्वयिवसकामदोपिनिकामासाशाति-शोरयस्प रस दिनुवाकविःसत्यनामानुरतंत्री बननदोपियःस्वामीकृप्मान मिःसनोवता हाय अंधकारावादित्यादिप्रायन्नाममंत्रतः कादिशीका पलायता तरतद। पाश्चमीश्वर॥श्रीवीरायनमस्तस्मायस्य गोहरिणाश्रितांन्तरतासावधान ह रिरप्पनिनंदमिगौतमादीमुनीन्नवार वालोवोवसन्नतीन मुनि पद्मनन्दि कृत वर्धमान चरितम् की ईडर से प्राप्त पांडुलिपि का प्रथम पृष्ठ सदापरसूतायात नियति यनतारा तिनसतानमा सरसाद किरक्रियादः श्रिया सशनिवजोयुक महान हलासना लिसकलिततायो वारपारादपायाः॥१८ इतिश्रावईमान शावतारनितिमा हाताशीक मुनि श्रीपदानंद दिर वितमनःसनामांकित विईमाजनिरिगगमनं नामविस मो। ॥ वतु॥ ईडर से प्राप्त पांडुलिपि का अन्तिम पृष्ठ अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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