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का निरूपण, जैन धर्म के स्वरूप का विवेचन तथा संक्षेप में 24 तीर्थकरों का वृत्त वर्णित है। "पितचरित' नामक द्वितीय प्रकरण में वर्धमान स्वामी के पिता सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला का जीवनवृत्त वर्णित है। तृतीय से लेकर एकादश प्रकरण में श्री वर्धमान के जन्म, बाललीलायें, वैराग्य, दीक्षा, उग्रतपश्चरण, तप काल में उत्पन्न विघ्नों के परिहार, शमातिरेक, केवलज्ञान, उपदेश एवं मोक्षप्राप्ति का वर्णन है। अन्तिम द्वादश प्रकरण 'उपसंहार' में मानवजाति के कर्तव्यों का विवेचन, शमादि की आवश्यकता तथा पंच महाव्रत की योग्यता का वर्णन है। भाव एवं भाषा की दृष्टि से यह गद्यकाव्य अत्यंत उत्कृष्ट तथा तीर्थकर महावीर के जीवन तथा उनके उदात्त गुणों का परिचायक है। सन्दर्भ स्थल - 1. वर्धमानचरितम्, कवि पद्मनन्दि, 1/219, 355; 2/12 - 14, 71, 92.
, 1/197 - 200, 211, 214, 313 - 326. , 1/276, 347, 352 . 1/243 , 1/95. . 1/219 , 1/101, 197, 249, 313 - 326. , 1/219, 355, 2/12 - 14, 92. . 1/101, 248. 249, 313: 2/155, . 2/183, 184 11/101, 126, 168, 344; 2/134. , 1/118. , 1/86, 359; 2/128, 150. , 1/50, 43; 2/93, 144, 184. , 2/72. , 1/253.
, 1/256. 18. डॉ. केदारनारायण जोशी (शोध प्रबन्ध) श्री पादशास्त्री हसूरकर की रचनाओं का समालोचनात्मक अध्ययन,
पृ. 59-60. 19 होल्कर राज्य अर्द्धवार्षिक अधिकारी सूची, 1 अक्टोबर 1935, पृ. 114.
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वही
प्राप्त - 19.2.01
अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International
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