Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ वर्ष- 13, अंक-2, अप्रैल 2001, 17-26 चन ( (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) ताथकर महावीर पर आधारित प्रबन्ध काव्य . .कु. रश्मि जैन* भगवान महावीर का चरित्र साहित्यकारों के लिये प्रारम्भ से ही प्रेरणा का स्रोत रहा है। रचनाकारों ने उनके उदात्त चरित्र में मानव जीवन की असीमित संभावनाओं को देखा है और उसे विविध भाषाओं में अभिव्यक्ति दी है। देवभाषा संस्कृत से लेकर नागरी लिपि हिन्दी तक का साहित्य भगवान महावीर के चरित्र की गाथा को वर्णित करता रहा है। प्रस्तुत आलेख में उनके चरित्र संबंधी प्रबंध ग्रंथों पर यथावश्यक प्रकाश डाला गया है। संस्कृत काव्य - 1 वर्धमान चरितम् - 'सन्मति चरित्र' या 'महावीर चरित्र' नाम से प्रसिद्ध इस महाकाव्य की रचना कवि असग ने शक संवत् 911 (988 ई.) में की। इसमें तीर्थंकर महावीर के पूर्वभवों तथा वर्तमान जीवन का चित्रण 16 सर्गों में निबद्ध है। कवि ने इसका आधार यतिवृषभाचार्य कृत 'तिलोयपण्णत्ती' तथा गुणभद्राचार्य कृत 'उत्तरपुराण' को बनाया है। 2. वर्धमान चरित - इसके अपर नाम 'वर्धमान पुराण' एवं 'महावीर पुराण' भी हैं। भट्टारक सकलकीर्ति ने विक्रम संवत् 1518 में इसका सृजन किया। 19 अधिकार वाले इस काव्य में भगवान महावीर के पूर्वभवों तथा वर्तमान भव का आद्योपांत विस्तृत वर्णन हुआ है। कवि ने प्रत्येक अधिकार के अंत में जो पुष्पिका दी है, उसके अनुसार ग्रंथ का नाम 'वीर वर्धमान चरित' है। 'वीर वर्धमान चरितम् (संस्कृत-हिन्दी) नाम से संपादन - अनुवाद डॉ. हीरालाल जैन ने किया जो सन् 1974 में भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। 3. वर्धमान काव्य या वर्धमान चरित - भट्टारक मुनि पद्मनंदीजी ने इसकी रचना की। इसके रचनाकाल संबंधी निश्चित उल्लेख नहीं मिलता है। इसकी एक प्रति (लिपिकाल सं. 1518) जयपुर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भंडार में तथा दूसरी प्रति (लिपिकाल सं. 1522) सूरत के गोपीपुरा मंदिर के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है।' 4. वर्धमान चरित - भट्टारक विद्याभूषण द्वारा रचित इस कृति का उल्लेख मिलता है। कवि की अन्य रचनाओं 'जम्बूस्वामी चरित्र' तथा 'पल्यविधान पूजा' के आधार पर "वर्धमान चरित' का समय विक्रम की 17वीं शती माना जा सकता है। 5. वीरोदय - यह बीसवीं शती का महाकाव्य है। इसके रचयिता ब्रह्मचारी कवि पंडित भूरामल शास्त्री थे, जो बीसवीं शताब्दी के दिगम्बर आचार्य मुनि ज्ञानसागरजी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इस कृति में कवि ने 22 सर्गों में भगवान महावीर का चरित्र देश की आधुनिक समस्याओं के निराकरण को ध्यान में रखते हए आधुनिक शैली में वर्णित किया है। यह छह सर्गों पर स्वोपज्ञ संस्कृत टीका तथा अन्य सर्गों पर स्वोपज्ञ हिन्दी टीका सहित प्रकाशित है। 6. मंगलायतनम् - महावीर चरित्र विषयक बिहारीलाल शर्मा द्वारा रचित 'मंगलायतनम्' का उल्लेख मिलता है। यह कृति वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, वाराणसी से सन् 1975 में प्रकाशित हुई है। 7. वीरशर्माभ्युदय - महाकवि पं. भूरामलजी (आचार्य ज्ञानसागरजी) ने संस्कृत में 'वीरशर्माभ्युदय' काव्य का सृजन किया। श्री दिगम्बर जैन मंदिर, दाँता - रामगढ, जिला सीकर (राजस्थान) * सहायक प्राध्यापक - हिन्दी, शासकीय कन्या महाविद्यालय, बीना। C/. दिनेश ट्रेडर्स, सर्वोदय चौक, बीना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120