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स्वर गूंजेंगे।
इस विषय में चिन्तन का विषय यह है कि यदि दिगम्बर जैन समाज के ही लोग अपने प्राचीन आगम के प्रमाण छोड़कर दूसरे ग्रन्थों एवं अर्वाचीन इतिहासज्ञों के कथन प्रामाणिक मानने लगेंगे तो उन पूर्वाचार्यों द्वारा कथित आगम के प्रमाण कौन सत्य मानेंगे? इस तरह तो "प्राचीन भारत' 12 पुस्तक में इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा द्वारा लिखित जैन धर्म के लिए मिथक कथाओं का गढ़ा जाना आदि बातें भी सत्य मानकर जैन धर्म को भगवान महावीर द्वारा संस्थापित मानने में भी हमें कोई विरोध नहीं होना चाहिए ? यदि सन् 1972 में लिखे गए उस कथन का हम आज विरोध कर उसे पूर्ण असंगत ठहराते हैं तो वैशाली को महावीर की जन्मभूमि कहने पर भी हमें इतिहास को धूमिल होने से बचाने हेतु गलत कहना ही पड़ेगा अन्यथा अपने हाथों से ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के अतिरिक्त कोई अच्छा प्रतिफल सामने नहीं आएगा।
हम तो शोध का अर्थ यह समझते हैं कि अपने मूल इतिहास एवं सिद्धान्तों को सुरक्षित रखते हुए वर्तमान को प्राचीनता से परिचित कराना चाहिए। वैशाली में न तो महावीर स्वामी का कोई प्राचीन मंदिर है और न ही उनके महल आदि की कोई प्राचीन इमारत मिली है. केवल कुछ वर्ष पूर्व वहाँ "कण्डग्राम" नाम से एक नवनिर्माण का कार्य शुरू हुआ है। जैसा कि पण्डित बलभद्र जैन ने भी "भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ'' 13 नामक ग्रन्थ में कुण्डलपुर तीर्थ के विषय में लिखा है -
"कुण्डलपुर बिहार प्रान्त के पटना जिले में स्थित है। यहाँ का पोस्ट आफिस नालन्दा है और निकट का रेल्वे स्टेशन भी नालन्दा है। यहाँ भगवान महावीर के गर्भ, जन्म और तपकल्याणक हुए थे, इस प्रकार की मान्यता कई शताब्दियों से चली आ रही है। यहाँ पर एक शिखरबन्द मंदिर है जिसमें भगवान महावीर की श्वेतचूर्ण की साढ़े चार फुट अवगाहना वाली भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वहाँ वार्षिक मेला चैत्र सुदी 12 से 14 तक महावीर के जन्मकल्याणक को मनाने के लिए होता है।"
कुण्डलपुर या कुण्डपुर को कुण्डग्राम कहकर वैशाली साम्राज्य की एक शासित इकाई मानते हुए क्या हमारे कुछ विद्वान राजा सिद्धार्थ को चेटकराजा का घरजमाई जैसा तुच्छ दर्जा दिलाकर उन्हें वैशाली के ही एक छोटे से मकान का गरीब श्रावक सिद्ध करना चाहते है? क्या तीर्थकर के पिता का कोई विशाल अस्तित्व उन्हें अच्छा नहीं लगता है? ।
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी इस विषय में बतलाती है कि सन् 1974 में महावीर स्वामी के 2500 वें निर्वाणमहोत्सव के समय पूज्य आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज, आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज, पण्डितप्रवर सुमेरचन्द दिवाकर, पंडित मक्खनलाल शास्त्री, डा. लालबहादुर शास्त्री - दिल्ली, पं. मोतीचंद कोठारी-फल्टण आदि अनेक विद्वानों से चर्चा हुई तो सब एक स्वर से कुण्डलपुर वर्तमान तीर्थ क्षेत्र को ही महावीर जन्मभूमि के रूप में स्वीकृत करते थे, वैशाली किसी को भी जन्मभूमि के रूप में इष्ट नहीं थी।
इसी प्रकार कुछ पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर "वैशाली" को महावीर जन्मभूमि के नाम से मान्यता नहीं दिलाई जा सकती है अत: विद्वान आचार्य, साधु - साध्वी सभी गहराई से चिंतन कर कुण्डलपुर की खतरे में पड़ी अस्मिता की रक्षा करें। जन्मभूमि के बाद निर्वाणभूमि की भी बारी आने वाली है!
वर्तमान की बुद्धिजीवी पीढ़ी ने महावीर स्वामी की कल्याणक भूमियों के भ्रामक
अर्हत वचन, अप्रैल 2001
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