Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 15
________________ हो गया यद्यपि यह एक ऐतिहासिक सत्य है तथापि आज भी दिगम्बर जैनधर्म के अतिप्राचीन प्रमाण मौजूद हैं जिनमें महावीर का जन्मस्थान कुण्डलपुर ही माना गया है और उन तथ्यों के आधार पर तीर्थंकर के जन्म से पूर्व 15 माह तक रत्नवृष्टि उनकी माता के महल में ही होने के प्रमाण हैं न कि नाना-नानी के आँगन में रत्नवृष्टि हो सकती है। पुनः जहाँ रत्नवृष्टि हुई है, भगवान का जन्म तो उसी घर में मानना पड़ेगा अतः "महावीर का जन्म त्रिशला माता की कुक्षि से कुण्डलपुर में ही हुआ था " यह दृढ़ श्रद्धान रखते हुए कुण्डलपुर को विकास और प्रचार की श्रेणी में अवश्य लाना चाहिए । कुण्डलपुर के विषय में वर्तमान अर्वाचीन ( दूसरे साहित्य के अनुसार) शोध का महत्व दर्शाते हुए यदि दिगम्बर जैन ग्रन्थों की प्राचीन शोधपूर्ण वाणी को मद्देनजर ( उपेक्षित) करके वैशाली को महावीर जन्मभूमि के नाम से माना जा रहा है तो अन्य ग्रन्थानुसार महावीर के दूसरा भाई महावीर का विवाह, जन्म से पूर्व उनका गर्भपरिवर्तन आदि अनेक बातें भी हमें स्वीकार करनी चाहिए, किन्तु शायद इन बातों को कोई भी दिगम्बर जैनधर्म के अनुयायी स्वीकार नहीं कर सकते हैं। अतः हमारा अनुरोध है कि अपनी परमसत्य जिनवाणी को आज के शोध की बलिवेदी पर न चढ़ाकर संसार के समक्ष महत्वपूर्ण प्राचीन दि. जैन ग्रन्थों के दस्तावेज प्रस्तुत करना चाहिए । वैशाली का विकास हो किन्तु महावीर जन्मभूमि के नाम से नहीं जहाँ जिस क्षेत्र में तीर्थंकर जैसे महापुरुषों के जन्म होते हैं वहाँ की तो धरती ही रत्नमयी और स्वर्णमयी हो जाती है अतः वहाँ दूर-दूर तक यदि उत्खनन में कोई पुरातत्व सामग्री प्राप्त होती रहे तो कोई अतिशयोक्ति वाली बात नहीं है अर्थात् महावीर के ननिहाल वैशाली में यदि कोई अवशेष मिले हैं तो वे जन्मभूमि के प्रतीक न होकर यह पौराणिक तथ्य दर्शाते है कि तीर्थंकर महावीर के अस्तित्व को वैशाली में भी उस समय मानकर उनके नामा-मामा सभी गौरव का अनुभव करते हुए सिक्के आदि में उनके चित्र उत्कीर्ण कराते थे तभी वे आज पुरातत्व के रूप में प्राप्त हो रहे हैं। - दिगम्बर परम्परानुसार तीर्थंकर तो अपने माता पिता के इकलौते पुत्र ही होते हैं अर्थात् उनके कोई भाई नहीं होता अतः माता पिता के स्वर्गवासी होने के पश्चात कुण्डलपुर की महिमा वैशाली में महावीर के मामा आदि जाति बन्धुओं ने प्रसारित कर वहाँ कोई महावीर का स्मारक भी बनवाया हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अत: संभव है कि उस स्मारक के अवशेष वहाँ मिल रहे हों। - वर्तमान में भी यदि वैशाली जनसामान्य के आवागमन की सुविधा युक्त नगर है तो वहाँ महावीर स्वामी का स्मारक आज भी जनमानस की श्रद्धा का केन्द्र बन सकता है किन्तु विद्वानों को उपर्युक्त विषयों पर गहन चिंतन करके ऐसा निर्णय लेना चाहिए कि प्राचीन सिद्धान्त धूमिल न होने पायें और भगवान महावीर के 2600 वें जन्मजयंति महोत्सव मनाने के साथ ही जैन समाज के द्वारा कोई ऐसा विवादित कार्य न हो जावे कि महावीर की असली जन्मभूमि "कुण्डलपुर" ही विवाद के घेरे में पड़कर महावीर जन्मभूमि के सौभाग्य से वंचित हो जावे । महावीरकालीन को शहर की एक कालोनी नहीं कह सकते कुण्डलपुर तीर्थंकर महावीर की जन्मनगरी में साक्षात् सौधर्म इन्द्र एक लाख योजन के ऐरावत हाथी पर बैठकर आता है और वहाँ भारी प्रभावना के साथ जन्मकल्याणक महोत्सव मनाता अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only - 13 www.jainelibrary.org

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