Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 21
________________ का निरूपण किया गया है। 13. वड्ढमाण चरिउ 'जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह' की 120वीं प्रशस्ति कवि 'विबुधश्रीधर' कृत 'वड्ढमाण चरिउ ́ की है। इसका रचनाकाल विक्रम सम्वत् 1190 है। इसमें 10 संधियाँ हैं। इस कृति की विशेषता यह है कि इसमें भगवान महावीर का चरित्र दिगम्बर परम्परानुसार वर्णित है, साथ ही कुछ घटनाओं का विशिष्ट वर्णन हुआ है, जिसमें श्वेताम्बर परम्परा का प्रभाव परिलक्षित होता है। कवि ने यह रचना वोदाउनगर निवासी साहू नेमिचन्द्र के अनुरोध से की थी, अतः कवि ने प्रत्येक संधि पुष्पिका में 'नेमिचन्दानुमत' लिखा है। इस काव्य का संपादन- अनुवाद डॉ. राजाराम जैन, आरा ने किया। यह भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली द्वारा सन् 1975 में प्रकाशित हुआ । इसके रचयिता अमरकीर्तिगणि हैं। इनका समय विक्रम की 13वीं 14. महावीर चरिउ शताब्दी है। 5 - - 15. वड्ढमाण कहा कवि नरसेनकृत इस काव्य का अपर नाम 'जिणरत्तिविहाणकहा' भी है। इसका समय विक्रम की 15वीं शती के लगभग है। इस कृति की विशेषता यह है कि जिस रात्रि में भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया था, उसी व्रत की कथा शिवरात्रि के ढंग पर रची गई है। तीर्थंकर महावीर का चरित्र होने से इस कृति का धार्मिक महत्त्व अधिक है। 16. सम्मइजिण चरिउ अपभ्रंश भाषा में कवि रइधू ने विक्रम की 15वीं शती में इसकी रचना की। इसमें 10 सर्ग तथा 246 कड़वक हैं। इस रचना का संपादन डॉ. राजाराम जैन, आरा ने किया । 'महावीर पुराण' नाम से इस कृति की प्रति कूँचा सेठ दिगम्बर जैन मन्दिर, दिल्ली में संकलित है। 17. वड्ढमाण कव्वु इसके रचनाकार 'जयमित्र हल्ल' हैं। डॉ. परमानन्द शास्त्री ने कवि के अन्य नाम हल्ल, हरिइंद, हरिश्चन्द्र तथा हरिचन्द भी माने हैं। इसमें 11 संधियाँ हैं। इस कृति में दिगम्बर परम्परानुसार वर्णन है तथा कई अन्य नई बातें भी समाविष्ट हैं। कवित्व की दृष्टि से यह श्रेष्ठ रचना है। इसकी हस्तलिखित प्रति (वि.सं. 1550) वधीचन्द दिगम्बर जैन मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। - 18. अपभ्रंश महावीर चरिउ अभयदेवसूरि द्वारा अपभ्रंश भाषा में प्रस्तुत रचना खंभात के ताड़पत्रीय भंडार में सुरक्षित है। डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री 'नीमच' ने 'वड्ढमाण चरिउ ' नाम से इसका संपादन किया है, ऐसा उल्लेख मिलता है। Jain Education International - 19. महावीर चरिउ गुणचन्द्र मुनि द्वारा रचित इस काव्य की प्रति देवचन्द लालाभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथ क्रमांक 75 बंबई में सुरक्षित है। - अपभ्रंश भाषा में श्वेताम्बर कवि धनपाल (विक्रम की 11वीं शती) ने 'सत्यपुरी मंडन महावीरोत्साह' ( 15 पद) की रचना की। रत्नप्रभसूरि ने विक्रम संवत् 1238 में 'महावीर चन्दनबाला पारणा संधि' की रचना की। 101 गाथाओं की यह रचना कवि की अन्य कृति 'उपदेशमाला' में संगृहीत है। कवि वर्धमान सूरि ने 'वीर जिणेसर पारणउ' विक्रम की 13वीं शती में लिखी। 47 गाथाओं की यह रचना पाटन शास्त्र भंडार में सुरक्षित है। कन्नड़ काव्य - संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के साथ ही कन्नड़ भाषा के कवियों ने महावीर चरित्र सम्बन्धी रचना करके साहित्येतिहास परम्परा में एक नई कड़ी जोड़ने का कार्य किया है। 20. वीर वर्धमान पुराण द्वितीय नागवर्म द्वारा विरचित चम्पू काव्य में 16 सर्ग हैं। इसका रचनाकाल 1042 ई है। 7 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 - For Private & Personal Use Only 19 www.jainelibrary.org

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