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21. वर्धमान पुराण - आचण्ण कवि कृत इस कृति का आधुनिक कन्नड़ अनुवाद टी.एस. नागराव पंडित नागराजैया द्वारा किया गया। इसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली द्वारा किया गया है। इस काव्य में 16 आश्वास हैं। इसका रचनाकाल 1195 ई. माना गया
22. वर्धमान चरित्र - कवि पदम द्वारा सांगत्य छंद में रचित इस ग्रन्थ में 12 संधियाँ हैं। इसकी रचनावधि 1527 ई. मानी जाती है। साहित्यिक दृष्टि से यह सुन्दर रचना
है।
हिन्दी काव्य -
हिन्दी भाषा के कवियों ने अपनी लेखनी से तीर्थंकर महावीर का पद्यबद्ध चरित्रांकन किया। प्राचीन तथा आधुनिक हिन्दी काव्यों में भगवान महावीर का चरित्र श्रेष्ठ काव्यपुरुष के रूप में अंकित किया गया। इन कवियों ने भगवान महावीर पर आधारित प्रबन्ध काव्य परम्परा को गति प्रदान की। 23. महावीर चरित (कल्पसिद्धान्त भाषित) - इसके रचनाकार मध्य युग के प्रथम लक्ष्मण माने जाते हैं। इसकी रचनावधि वि.सं. 1521 है। इसकी भाषा राजस्थानी हिन्दी है। 24. महावीर रास - रास शैली में रचित इस आद्य प्रबंध काव्य की रचना कवि पद्म ने विक्रम संवत् 1609 में की। इसकी काव्य भाषा राजस्थानी हिन्दी है। इसकी मूलप्रति श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती जैन भवन, ब्यावर में सुरक्षित है। इसका संपादन डॉ. राजाराम जैन, आरा ने किया, जो 'महावीर रास' नाम से सन् 1994 में प्राच्य श्रमण भारती, मुजफ्फरनगर से प्रकाशित हुई है। 25. महावीर रास - भटटारक कमदचन्द्र ने विक्म संवत 1609 में इसकी रचना की। यह राजस्थानी हिन्दी भाषा का काव्य है। 26. भगवान महावीर रास - वर्धमान कवि द्वारा विक्रम सं. 1665 में रचना हुई। इसकी एकमात्र पांडुलिपि अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है। 10 27. वर्धमान पुराण - बुंदेलखण्ड के निवासी कविवर नवलशाह द्वारा रचित सचित्र महाकाव्य की रचनावधि वि.सं. 1825 है। स्व. पंडित पन्नालाल साहित्याचार्य, सागर के संपादकत्व में प्रथम बार सूरत से प्रकाशित हुआ। आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज ने इसका संशोधन - अनुवाद तथा संपादन किया, तत्पश्चात् 'भगवान महावीर और उनका तत्त्व दर्शन' नामक ग्रन्थ के चतर्थ खण्ड में हिन्दी टीका सहित सचित्र प्रकाशित हुआ। सम्पूर्ण कथावस्तु 16 अधिकारों में संघटित है। कवि की 16 अधिकार रखने संबंधी कल्पना बड़ी सरस एवं सुन्दर है। इसकी काव्य भाषा खड़ी बोली, ब्रज तथा बुंदेली का समुचित मिश्रण है। इसमें भगवान महावीर के पूर्वभव से लेकर मोक्ष प्राप्ति, गौतम गणधर को केवलज्ञान प्राप्ति, धर्मोपदेश, विहार आदि के वर्णन के पश्चात् कवि ने अपना विस्तृत परिचय भी दिया है। इसमें जैन सिद्धान्त का तात्त्विक विवेचन भी मिलता है। 28. वर्धमान - बीसवीं सदी में जैनेतर कवि अनूप शर्मा ने खड़ी बोली में 'वर्धमान' काव्य की रचना की। यह सन् 1951 में भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ। यह संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में 17 सर्गों की रचना है। इसमें संस्कृत के प्राचीन महाकाव्यों की शास्त्रीय शैली का प्रभाव एवं निर्वाह हुआ है। कवि ने श्वेताम्बर एवं दिगम्बर मान्यताओं में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। 29. वीरायण - सौराष्ट्र के राजकवि मलदास मोहनदास नीमावत ने रामचरित मानस की शैली (चौपाई छंद) पर 'वीरायण' लिखा। यह हिन्दी, गुजराती अनुवाद सहित 1952 ई.
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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