Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ आप्तवाणी-१ १७ आप्तवाणी-१ हैं। निमित्त को कभी काटते नहीं। निमित्त को काटकर तू अपना भयंकर अहित कर रहा है। जरा मूल रूट कॉज़ (मूल कारण) का पता लगा न? तो तुझे हल मिलेगा। मैं बचपन में जरा शरारती था। तो शरारत बहुत करता था। एक सेठ अपने पिल्ले के साथ बहुत खेलते थे। उस समय मैं पीछे जाकर, उन्हें पता नहीं चले ऐसे, कुत्ते की पूंछ जोर से दबा देता था। कुत्ता आगे सेठ को देखता और फटाक से उसे काट लेता। सेठ शोर मचाता। इसको कहते हैं, निमित्त को काटना। आत्मा-अनात्मा उस अवलंबन से मन चैन से बैठने ही नहीं देता। यदि आपका प्रारब्ध का अवलंबन सही है, तो आपको एक भी चिंता नहीं होनी चाहिए। मगर चिंता का तो कारखाना बनाया है। इसलिए सभी मार खाते हैं। ऐसे खोटे अवलंबन लोगों को दिए गए हैं, इसलिए तो हिन्दुस्तान की अवदशा हुई है। उसकी प्रगति कुंठित हो गई है। हम कोटि जन्मों की खोज के बाद संसार को एक्जैक्ट (यथार्थ) जैसा है वैसा, बता रहे हैं कि प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों ही पंगु अवलंबन हैं। एक 'व्यवस्थित' ही सही अवलंबन है, फैक्ट बात है, साइन्टिफिक है। 'व्यवस्थित' अर्थात् क्या? साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स के आधार पर जो जो होता है, वह 'व्यवस्थित' है। 'व्यवस्थित' का ज्ञान सभी अवस्थाओं में संपूर्ण समाधानकारी ज्ञान है। इसका आपको एक सादा उदाहरण देता हूँ। एक काँच का गिलास आपके हाथ से छूटने लगा, उसे बचाने के लिए आपने हाथ को ऊपर-नीचे करके अंत तक बचाने का प्रयत्न किया, फिर भी वह गिर पड़ा और टूट गया, तब उसे फोड़ा किस ने? आपकी तनिक भी इच्छा नहीं थी कि गिलास टूटे उलटे आपने तो उसे अंत तक बचाने का प्रयत्न किया। तब क्या गिलास की खुद की इच्छा थी टूटने की? नहीं, उसको तो ऐसा हो ही नहीं सकता। और कोई हाजिर नहीं है फोडनेवाला. तो फिर फोड़ा किस ने? 'व्यवस्थित ने'। 'व्यवस्थित' एक्जेक्ट नियमानुसार चलता है। वहाँ अँधेरनगरी नहीं है। यदि 'व्यवस्थित' के नियम में वह गिलास टूटनेवाला ही नहीं होता, तो ये काँच के गिलास के कारखाने कैसे चलते? 'व्यवस्थित' को तो आपका भी चलाना है और कारखाने भी चलाने हैं और हजारों मजदूरों का पेट भी पालना है। अतः नियम से गिलास टूटेगा ही, टूटे बिना रहता ही नहीं। तब अभागा, टूटे तब दुःखी होता है, गुस्सा करता है। अरे! नौकर के हाथों यदि टूट जाए और दो-चार मेहमान बैठे हों, तो मन में सोचता है कि कब मेहमान जाएँ और कब मैं नौकर को चार थप्पड़ जड़ दूँ? और मुआ, ऐसा करता भी है! पर यदि उसकी समझ में आ जाए कि नौकर ने नहीं तोड़ा पर 'व्यवस्थित' ने तोड़ा है, तो होगा कुछ? संपूर्ण समाधान रहेगा कि नहीं रहेगा? वास्तव में नौकर बेचारा निमित्त है। उसे ये सेठ लोग काटने दौड़ते आपके शरीर में आत्मा है वह तो निश्चित है न? प्रश्नकर्ता : हाँ जी। दादाश्री : तो वह किस स्वरूप में होगा? मिक्सचर या कम्पाउन्ड? ये आत्मा और अनात्मा मिक्सचर स्वरूप में होंगे कि कम्पाउन्ड स्वरूप में? प्रश्नकर्ता : कम्पाउन्ड! दादाश्री : यदि कम्पाउन्ड स्वरूप में हों, तो तीसरा नया ही गुणधर्मवाला पदार्थ उत्पन्न हो जाएगा, और आत्मा व अनात्मा उनके अपने गुणधर्म ही खो देंगे। तब तो कोई आत्मा अपने मूलधर्म में आ ही नहीं सकता, और कभी भी मुक्त नहीं हो सकता। देखो मैं तुम्हें समझाता हूँ। यह आत्मा जो है, वह मिक्सचर स्वरूप में रहा है और आत्मा व अनात्मा दोनों ही अपने-अपने गुणधर्म समेत रहे हए हैं। उन्हें अलग किया जा सकता है। सोने में तांबा, पीतल, चाँदी आदि धातुओं का मिश्रण हो गया हो, तो कोई साइन्टिस्ट उनके गुणधर्मों के आधार पर उन्हें अलग कर सकता है कि नहीं? तुरंत ही अलग कर सकता है। उसी प्रकार आत्मा, अनात्मा के गुणधर्मों को जो पूर्ण रूप से जानते हैं. और अनंत सिद्धिवाले सर्वज्ञ ऐसे ज्ञानी हैं, वे उनका पृथक्करण करके, उन्हें अलग कर सकते हैं। हम संसार के सबसे बड़े साइन्टिस्ट हैं। आत्मा और

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141