Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 47
________________ आप्तवाणी-१ ७१ ७२ आप्तवाणी-१ ऐसा होता है? कैसे होगा? यह अंबालाल मूलजीभाई, देहधारी है, फिर भीतर परमात्मा संपूर्ण प्रकट हो गए हैं, फिर भी उनकी वाणी भी रिकार्ड स्वरूप है। हमें बोलने की सत्ता ही नहीं है। हम तो रिकॉर्ड कैसा बजता है, उसे देखते है और जानते हैं। वाणी पूर्णतया जड़ है। पर हमारी वाणी चेतन को, प्रकट परमात्मा को स्पर्श करके निकलती है, इसलिए उसमें चेतन भाव है, प्रत्यक्ष सरस्वती है। यह फोटोवाली सरस्वती तो परोक्ष सरस्वती है। पर हमारी वाणी तो प्रत्यक्ष सरस्वती है। इसलिए सामनेवाले के अनंत जन्मों के पापों को जला कर भस्मीभूत करती है। हमारी वाणी संपूर्ण वीतराग होती है, स्याद्वाद होती है। वीतराग को पहचानने की सादी रीत उनकी वाणी है। जितना आपका जौहरीपन होगा, उतनी इसकी कीमत होगी। पर इस काल में जौहरीपन ही कहीं रहा नहीं है। मुए, पाँच अरब के हीरे की कीमत पाँच रुपये लगाते हैं, तब हीरे को खुद बोलना पड़ता है कि मेरी क़ीमत पाँच अरब की है। वैसे ही आज हमें खुद बोलने की नौबत आई है कि हम भगवान हैं! अरे! भगवान के भी ऊपरवाले हैं! संपूर्ण वीतराग! भगवान ने हमें ऊपरवाले का पद खुद दिया है। उन्होंने कहा, 'हम पात्र खोजते थे. जो हमें आपमें दिखाई दिया। हम तो अब संपूर्ण वीतराग होकर मोक्ष में बैठे हैं। अब हम से किसी का कुछ सिद्ध नहीं हो सकता। इसलिए आप प्रकट स्वरूप में सर्व शक्तिमान हैं। देहधारी होते हुए भी संपूर्ण वीतराग हैं। इसलिए हम आपको हमारा भी ऊपरी (Superior) बनाते हैं ! चौदह लोक के नाथ के हम आज ऊपरी हैं। सर्व सिद्धि सहित यह ज्ञानावतार प्रकट हुआ है! अरे! तेरा दीया सुलगाकर (अपनी ज्योति जलाकर) चलता बन। बहुत नाप-तौल मत करना। अतुल्य और अथाह ज्ञानी पुरुष, उसकी तू क्या क़ीमत करनेवाला है? घर पर बीवी तो तुझे झिड़क देती है कि तुम्हारे में अक्ल नहीं है, फिर तुम ज्ञानी पुरुष को कैसे नाप सकते हो? जौहरीपन है तुम्हारे में? अरे! मुझे नापने जाएगा, तो तेरी मति का नाप निकल जाएगा। उसके बजाय सारा आड़ापन गठरी में बाँधकर बांद्रा की खाड़ी में फेंक आ और सयाना होकर, सीधा होकर बोल दे कि मैं कुछ जानता नहीं हूँ और आप मुझे अनंतकाल की भटकन से छुडाइए बस इतना बोल दे, ताकि तेरा हल निकाल दें। ज्ञानी पुरुष चाहे सो करें, क्योंकि मोक्षदान का लायसन्स उनके हाथों में होता है। ज्ञानी कितने होते हैं संसार में? पाँच या दस? अरे! कभी कभार ज्ञानी जन्मते हैं, और उसमें भी अक्रम मार्ग के ज्ञानी तो दस लाख वर्षों में जन्मते है और वह भी ऐसे वर्तमान आश्चर्य युग जैसे कलियुग में ही। लिफ्ट में ही ऊपर चढ़ाते है। सीढ़ियाँ चढ़कर हाँफना नहीं पड़ता। अरे! बिजली की चमकार में मोती पिरो ले। यह बिजली की चमकार हुई है, तब त अपना मोती पिरो ले। पर तब मुआ धागा खोजने निकलता है। क्या करें? पुण्याई कच्ची पड़ जाती है। मात्र वीतराग वाणी ही मोक्ष में ले जानेवाली है। हमारी वाणी मीठी, मधुरी होती है, अपूर्व होती है। पहले कभी सुनने में नहीं आई हो ऐसी होती है, डायरेक्ट (प्रत्यक्ष) वाणी होती है। शास्त्र में जो वाणी होती है वह इनडायरेक्ट (परोक्ष) वाणी होती है। डायरेक्ट वाणी यदि एक ही घंटा सुनें, तो समकित हो जाए। हमारी वाणी स्याद्वाद होती है। किसी का भी प्रमाण नहीं दुःखे, उसका नाम स्यादवाद। सर्व नय सम्मत होती है। सभी व्यू पोइन्ट को मान्य करती है। क्योंकि हम खुद सेन्टर में होते हैं। हमारी वाणी निष्पक्षपाती होती है। हिन्दु, मुस्लिम, पारसी, खोजा सभी हमारी वाणी सुनते हैं और उन्हें हम आप्त पुरुष लगते हैं, क्योंकि हममें भेदबुद्धि नहीं होती। सभी के अंदर मैं ही बैठा होता हूँ न! बोलनेवाला भी मैं और सुननेवाला भी मैं ही। संपूर्ण रूप से सामनेवाले का आत्म कल्याण कैसे हो, ऐसे भाववाली वाणी, वही वीतराग वाणी। और वही उसका कल्याण करती है, ठेठ मोक्ष में ले जाती है। मौन-परमार्थ मौन सारा दिन हमारा यह रिकॉर्ड चलता है पर फिर भी हम मौन हैं। आत्मार्थ के अलावा और किसी अर्थ को लेकर हमारी वाणी नहीं होती है, इसलिए हम मौन हैं। मौन पाले वह मुनि। पर ये मुनि तो बाहर का

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