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आप्तवाणी - १
अहंकार यदि हमारे महात्माओं को हो जाए, तो 'दादाजी' हैं इसलिए गिर नहीं पड़ते, पर ज्ञानावरण आता है। दैवीशक्तिओं का आविर्भाव हुआ हो और अहंकार हो जाए, तो जितना ऊपर चढ़ा हो उतना ही नीचे गिरनेवाला है । दैवीशक्ति के आधार पर हो और मैंने किया, ऐसा अहंकार करे, तो अधोगति में जाता है। दैवीशक्ति का दुरुपयोग करे, तो भी अधोगति होती है। दैवी अहंकार का रीएक्शन आए, तब नर्कगति होती है।
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छोटे बच्चों का अहंकार सुषुप्त दशा में होता हैं। अहंकार तो होता है, मगर वह कम्प्रेस होकर रहा होता है। वह तो ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है, त्यों-त्यों बाहर आता है। छोटे बच्चों के खोटे अहंकार को यदि पानी नहीं दिया जाए, तभी वे सयाने होते हैं। उनके खोटे अहंकार के पोषण के लिए आपकी ओर से खुराक नहीं मिले, तो बच्चे सुंदर और संस्कारी होते हैं।
संसार के लोगों के साथ उलझनें पैदा मत करना। लोग तो अपने अहंकार का पोषण खोजते हैं, इसलिए यदि उलझनें पैदा नहीं करनी हों, तो उनका अहंकार पोषकर आगे निकल जाना वर्ना आपका रास्ता रुक जाएगा। अहंकारी मनुष्य अहंकार से उलझनें खड़ी करता है। उसे लोभ की गाँठ नहीं पड़ती।
ऊँची विचारशक्ति, समझने की शक्ति हो, वह कल्चर्ड कहलाता है। कल्चर्ड में अहंकार का जहर बहुत होता है। ममता का जहर भी बहुत बाधक है। ममता छूटे, मगर अहंकार छूटे ऐसा नहीं है।
कई आत्महत्या कर लेते हैं, वह भयंकर अहंकार है। अहंकार भग्न हो, किसी जगह से उसे ज़रा सा भी पोषण नहीं मिले, ऐसी स्थिति में आखिर आत्महत्या करते हैं। इससे भयंकर अधोगति बाँधते हैं। अहंकार जितना कम होता है, उतनी गति ऊँची होती है और अहंकार जितना ज्यादा होता है, उतनी गति नीची होती है।
कोई जीव मारने का अहंकार करता है, तो कोई जीव बचाने का अहंकार करता है। भगवान ने दोनों को अहंकारी बताया है, क्योंकि किसी
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आप्तवाणी - १
में भी जीव को मारने की या बचाने की शक्ति ही नहीं है। यह उसकी सत्ता में ही नहीं है। खाली अहंकार ही करते हैं कि मैंने जीव को बचाया, मैंने जीव को मार डाला। दोनों ही अहंकारी हैं। बचानेवाले की अच्छी गति और मारनेवाले की अधोगति होती है। दोनों में बंधन तो है ही ।
सिंह बड़ा अहंकारी होता है। सिंह तो तिर्यंचों का राजा है। सारे योनियों में भटक भटककर आया है, पर कहीं सुख नहीं मिला, इसलिए अब जंगल में अहंकार की गर्जनाएँ और विलाप करता है। छूटने की इच्छा है, पर मार्ग नहीं मिल रहा। मार्ग मिलना अति अति दुर्लभ है और उसमें भी ‘मोक्षदाता' का संयोग आ मिलना तो अति अति दुर्लभ है। अनेकों संयोग मिले और बिखर गए पर ज्ञानी का संयोग मिले, तो सदा के लिए हल निकल आए।
अहंकार का समाधान
यह रूपक जो दिखाई देता है, वह संसार नहीं है। अहंकार ही संसार है। इसलिए ऐसे संसार में कुछ न भी रहा, तो उसमें आपत्ति क्या है? एक आदमी ने हमारे साथ पाँच सौ रुपये का धोखा किया हो और लौटाने के समय पर हमारे अहंकार का समाधान नहीं करता, तो रुपये वापस लेने को हम उस पर केस करके उसे हिला देते हैं। पर यदि फिर वह आकर हमारे पैर पकड़ ले और रोए, गिड़गिड़ाए, तो हमारा अहंकार संतुष्ट होता है, अतः हम उसे छोड़ देते है ।
यह अहंकार तो ऐसा है कि किसी को भी वह जहाँ बैठा हो, उस बैठक के लिए अभाव नहीं होने देता। एक मज़दूर तक अहंकार को लेकर अपने झोंपड़े से ही ममता रखता है, सुख लेता है। आखिर ऐसा अहंकार करके भी सुख मानता है कि हम कुत्तों, जानवरों से तो सुखी हैं न? अहंकार से हर कोई, उसे जो कुछ प्राप्त हुआ हो उसमें अभाव नहीं होने देता।
अहंकार से भेद पड़ते हैं, संप्रदाय बनते हैं। ज्ञानी पुरुष निरहंकारी होते हैं, उनसे तो सारे संप्रदाय एक हो जाते हैं। भेद डालकर, रामराज्य भुगतना वह तो अहंकारियों का काम ही है।