Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 122
________________ आप्तवाणी-१ २२१ २२२ आप्तवाणी-१ बाकी चाहे जो भी उपाय करे मगर जब तक चार्ज बंद नहीं होता तब तक मोह नहीं छूटता, फिर तू चाहे जो भी त्यागे या जो भी करे, चाहे उलटा लटके पर मोह नहीं छूटनेवाला। उलटे और अधिक फँसता जाएगा। पचास प्रकार के (पच्चीस चार्ज और पच्चीस डिस्चार्ज) मोह जाएँ, तो हल निकलेगा। ___'मैंने यह किया' ऐसा कहा कि चार्ज हुआ। मैंने दर्शन किए, प्रतिक्रमण किए, सामायिक की ऐसा कहा कि चार्ज हो गया। नाटकीय भाषा में बोलें, तो हर्ज नहीं है, पर निश्चय से बोलें, तो उसका मद चढ़ता है। इसलिए डिस्चार्ज होते समय नया चार्ज भी होता है। चार्ज हमारे हाथों में है, डिस्चार्ज हमारे हाथों में नहीं है। मात्र मोक्ष की ही इच्छा करने जैसी है, तो मोक्ष का मार्ग मिल जाएगा। मोक्ष की इच्छा का चार्ज करो प्रश्नकर्ता : कल्पना और इच्छा में क्या अंतर है? दादाश्री : कल्पना मूल स्वरूप की अज्ञानता से खड़ी होती है और इच्छा डिस्चार्ज के कारण होती हैं। पर मूल इच्छा जो खड़ी होती है, वह कल्पना में से खड़ी होती है। ऐसा है, आकाश से पानी बरसता है, आकाश अपनी जगह पर ही है, हवा चलती है और ऊपर का पानी नीचे के पानी में पड़ता है, तब बुलबुले बनते हैं। बरसात होती है उसमें किसी की इच्छा नहीं है, न हवा की, न पानी की। ऐसा है यह सब! प्रश्नकर्ता : चार्ज हुआ या डिस्चार्ज यह लक्ष्य में कैसे आए? दादाश्री : 'मैं चंदूलाल हूँ,' ऐसा भान हुआ तब से चार्ज हुआ। 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसी सभानता रहे, तो कुछ भी चार्ज नहीं होता। पर यदि डाँवाडोल हो, तो चार्ज होता है। पर ऐसा कौन करेगा? जितनेजितने चार्ज के लक्षण दिखाई देते हैं, वे भी डिस्चार्ज हैं। चार्ज होता है या डिस्चार्ज इसका पता नहीं चलता, यदि इसका पता चल जाता, तो हर कोई चार्ज बंद कर देता। वह तो ज्ञानी पुरुष के बगैर कोई उसे समझा नहीं सकता। खुद 'शुद्धात्मा' है, इसलिए डिस्चार्ज ही है। यदि चंदूलाल हुआ तो चार्ज है। जब डिस्चार्ज होता है, तब उस पुरानी बैटरी का इफेक्ट सहन नहीं होता, इसलिए उसके असर से ही नयी बैटरी चार्ज होती रहती है। न? देखने का अधिकार सभी को है, पर चिंतन का नहीं है, उसमें तन्मय होने का नहीं है। देखते तो ज्ञानी पुरुष भी हैं पर चिंतन में अंतर है। इस मोहमयी नगरी (मुंबई) में सभी घूम-फिर रहे हैं और ज्ञानी पुरुष भी घूमते हैं, पर किसी वस्तु का उन्हें चिंतन नहीं होता है। कहीं पर भी उनका चित्त नहीं जाता है। भावकर्म चार्ज बैटरी है। आत्मा के अत्यंत निकट पड़ी है, इसलिए निरंतर चार्ज होती रहती है। उस बैटरी का चार्ज होना हमने बंद कर दिया, इसलिए महात्माओं के अब डिस्चार्ज बैटरी ही रही। अब तो जिस भी भाव से डिस्चार्ज होना हो, होता रहे। 'हम' उसे देखेंगे। मन आगे-पीछे होता हो, तो उसे जानना और सीधा हो उसे भी जानना, ताकि चार्ज नहीं हो। अब तो जिसे आना हो वह आए। यह हो, तो भी ठीक और नहीं हो, तो भी ठीक। चार्ज होना शुरू हो, तो चिंता शुरू हो जाती है। भीतर जलने लगता है। अग्नि सुलगती है। आकुलता और व्याकुलता में रहते हैं। जब कि अकेले डिस्चार्ज में ऐसा नहीं रहता। निराकलता रहती है, क्योंकि उसमें तन्मयाकार नहीं हुआ होता है। भगवान कहते हैं, 'यदि डिस्चार्ज होता है, तब उसकी ज़िम्मेदारी हमारी है, पर चार्ज मत होने देना' इन दो वाक्यों में ही दनिया के सभी शास्त्रों का ज्ञान समाया हुआ है। चार्ज बंद हुआ, इसलिए डिस्चार्ज बंद ही हुआ कहलाएगा। मोह 'भावकर्म ही चार्ज बैटरी है।' इन पाँच शब्दों में भगवान के पैंतालीस के पैंतालीस आगम समा गए। बाकी एक मोह को निकालने में लाख-लाख जन्म लेने पड़ते हैं।

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