Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 127
________________ आप्तवाणी-१ २३१ २३२ आप्तवाणी-१ से उन्हें खुराक मिलती रहती है। वे जीते हैं किस प्रकार? और वह फिर अनादिकाल से जी रहे हैं। इसलिए उनकी खुराक बंद कर दो। ऐसा विचार तो किसी को भी आता नहीं है और सभी उन्हें मार-पीटकर निकालने में लगे हैं। वे चारों ऐसे जानेवाले नहीं हैं। वह तो आत्मा बाहर निकले, तो अंदर सबकुछ झाड़-बुहार कर साफ करने के बाद निकलता है। उन्हें हिंसक मार नहीं चाहिए। उन्हें तो अहिंसक मार चाहिए। आचार्य शिष्य को कब झिडकते हैं? क्रोध हो. तब। उस समय कोई कहे, 'महाराज, इसे क्यों झिड़काते हैं?' तब महाराज कहते हैं, 'वह तो झिड़कने योग्य ही है।' बस, खतम। ऐसा कहा वही क्रोध की खराक। किए गए क्रोध का रक्षण करना ही उसकी खुराक है। कोई कंजूस स्वभाव का आपसे चाय की पुड़िया लाने को कहे और आप ३० पैसे की लाएँ, तो वह कहेगा, 'इतनी महँगी थोड़े ही लाते है?' ऐसा बोला, उससे लोभ को पोषण मिलता है और कोई अस्सी पैसे की चाय की पुड़िया लाए, तो फजूल-खर्च मनुष्य कहता है 'अच्छी है।' तो वहाँ फजूलखर्ची के लोभ को पोषण मिलता है। यह हुई लोभ की खुराक। हमें नोर्मल रहना है। अब कपट क्या खाता होगा? रोज़ कालाबाजारी करता हो, पर कपट की बात निकले तब वह बोल उठता है कि हम ऐसी कालाबाजारी नहीं करते। ऐसे वह ऊपर से साहुकारी दिखाता है, वही कपट की खुराक। मान की खुराक क्या? चंदूलाल सामने मिल जाएँ और हम कहें 'आइए चंदूलाल जी', तब चंदूलाल की छाती फूल जाती है, अकड़ जाता है और खुश होता है, वह मान की खुराक। आत्मा के अलावा सभी अपनी-अपनी खुराक से जीते हैं। हम तो इन चारों को क्रोध-मान-माया-लोभ से कहेंगे कि आओ बैठो, पर उसे खुराक नहीं देंगे। क्रोध-मान-माया-लोभ, ये चारों किस से खड़े होते हैं? खुद के ही प्रतिष्ठा करने से। ज्ञानी पुरुष उस प्रतिष्ठा में से उठाकर, उसकी जगत् निष्ठा में से उठाकर ब्रह्म में, स्वरूप में बिठा देते हैं और ब्रह्मनिष्ठ बना देते हैं, तब इन चारों से छुटकारा मिलता है। ज्ञानी पुरुष चाहें सो करें! ये क्रोध-मान-माया-लोभ तो आत्माअनात्मा, ज्ञान-अज्ञान के बीच की कड़ी जैसे हैं, जंजीर हैं। नहीं तो अनासक्त भगवान को आसक्ति कैसी? होम डिपार्टमेन्ट-फ़ॉरेन डिपार्टमेन्ट पेरू या अन्य किसी देश में तूफ़ान आए या ज्वालामुखी फट पड़े, तब हमारे देश के प्रधानमंत्री मीटिंग बुलाकर देश के विदेश मंत्री द्वारा पेरू के प्रधानमंत्री के नाम दिलासे का पत्र भिजवाते हैं कि आपके देश में तूफ़ान के कारण हज़ारों लोग मर गए हैं और लाखों बेघर हुए हैं, यह जानकर हमें गहरा दुःख हुआ है। हमारे देशवासी भी बहुत शोक संतप्त हैं। हमारे देश के ध्वज भी हमने नीचे उतार दिए हैं, आपके दुःख में हमें सहभागी समझिए, वगैरा, वगैरा। अब एक ओर ऐसा आश्वासन पत्र लिखा जा रहा हो और दूसरी ओर नाश्ता-पानी, खाना-पीना सबकुछ चल रहा होता है। यह तो ऐसा है न कि फ़ॉरेन अफेयर्स (विदेशी मामलों) में सभी सुपरफ्लुअस रहते हैं और होम अफेयर्स में सावधान। फ़ॉरेन की बात आई अर्थात् ऊपर-ऊपर से। बाहरी शोक और सांत्वना होते हैं, अंदर से कुछ नही होता। अंदरूनी तौर पर तो चाय-नाश्ते ही होते हैं। वहाँ पर तो कम्पलीट सुपरफ्लुअस रहते हैं। वैसे ही हमारे अंदर दो डिपार्टमेन्ट हैं, होम और फ़ॉरेन। फ़ॉरेन डिपार्टमेन्ट में सुपरफ्लुअस रहने जैसा है और होम डिपार्टमेन्ट में सतर्क रहने जैसा है। बाकी, मन-वचन-काया के संसार व्यवहार में फ़ॉरेन अफेयर्स की तरह सुपरफ्लुअस रहने जैसा है। "संयोग निरंतर बदलते ही रहेंगे, पर उनमें से 'शुद्ध हेतु योग्य संयोगो' में ही एकाकार होने जैसा है। बाकी शेष सारे संयोगो में

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