Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 91
________________ १६० आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ १५९ गाँठे पडी होती हैं वे वेग से फटती हैं। जो आग्रही होते हैं उनके गाँठे भारी पड़ी हुई होती हैं। इसलिए, 'व्यवस्थित' के नियमों के आधार पर फूटती हैं, तब उसे ऐसा होता है कि ऐसा कर डालूँ और वैसा कर डालूँ। उठाकर चाय के कप-रकाबी तक फोड डालता है। कोई भी तूफान मच जाता है। जब कि निराग्रही, जिसे बहुत आग्रह नहीं होता, उसे भारी गाँठें नहीं पड़ी होती हैं। उद्वेग में मनुष्य पागल हो जाता है। उद्वेग के विचार आएँ, तो वह कार्य स्थगित कर देना। उद्वेग में हो, तो वह खराब ही होता है। वेग में आएँ, तभी कार्य अच्छा होता है। उद्वेग अर्थात् ऊँचे चढ़ाना। उद्वेग यदि सीधा हो, तो ज्ञान में एक मील ऊपर चढ़ा दे, पर उलटा चले, तो कितने ही मील पीछे धकेल देता है। उद्वेग ज्ञान जागृति के लिए अच्छा है पर शर्त इतनी कि सीधा रहे तो। महात्मा हों, तो आपका मन शांत कर दें। आवेग में से वेग में ले आएँ। वेग में हो, तो सीधा कर दें। मनुष्य का मन गति में लाना चाहिए। मन आवेग में से वेग में ला दें, वही महात्मा। यह देह यदि अविनाशी बनानी हो, तो इस देह पर रखी प्रीति काम की है। मगर इसमें तो पीप भर जाए, इस पर प्रीति कैसी? प्रीति कितनी कि इस देह में ज्ञानी पुरुष मिले हैं, तो काम निकाल लें, बस उतनी। इस देह के लिए प्रीति से तो उद्वेग होता है। प्रीति करोगे, तो भी वह तो नष्ट ही होनेवाली है न? भगवान ने भी देह को दगा कहा है। आखिर तो देह राख ही हो जानेवाली है न? यह देह ही राग और द्वेष करवाती है। भगवान क्या कहते हैं कि अनंत जन्म देह के लिए निकाले, अब एक जन्म आत्मा के लिए निकाल। उद्वेग होता है, वह यों ही नहीं होता। वह तो हिसाबी होता है और उसका पता चल ही जाता है कि वह क्यों आया? पहचानवाला हो वही आता है। यों ही तो कुछ भी नहीं होता। उद्वेग से एक्सिडेन्ट है, इन्सिडेन्ट नहीं है। एन इन्सिडेन्ट हेज़ सो मेनी कॉज़ेज़ एन्ड एन एक्सिडेन्ट हेज़ टू मेनी कॉज़ेज़ (किसी घटना के घटने के अनेक कारण होते हैं और किसी दुर्घटना के घटने के अनेकानेक कारण होते हैं)। इस दुनिया में आफ़रीन होने जैसी एक ही चीज़ है, और वह है ज्ञानी! दूसरी सभी जगहें दु:खदायी वस्तु हैं। निरंतर सुख हो वहीं पर ही आफ़रीन होने जैसा है। उद्वेग कहाँ होता है? जहाँ आफ़रीन के स्टेशन होते हैं, वहाँ होता है। उद्वेग का कारण ही वह है। चाय-नाश्ता करने में हर्ज नहीं है, पर गाड़ी आने पर उसे छोड़कर गाड़ी में बैठ जाना। पर यह तो जिस स्टेशन पर आफ़रीन हुआ, वहीं पर बैठा रहता है और गाड़ी निकल जाती है। उद्वेग सब छोड़कर भगाता है और फिर सीढ़ियाँ चूक गए, तो क्या हो? ऐसा यदि हमारे सत्संग के लिए सब छोड़कर भागे न, तो काम ही हो जाए! एक ओर सत्संग है, जो परम हितकारी है और दूसरी ओर आकर्षणवाले हैं, जो परेशान करते हैं। निद्रा नींद जीवमात्र की नेसेसिटी है, पर नींद के प्रमाण का ही कहीं ध्यान नहीं रखा है। इस काल के मनुष्य भी कैसे हो गए हैं? यह तो चित्र-विचित्र वंशावली पैदा हुई है, वर्ना ऐसी नींद होती है कहीं? ये पशुपक्षिओं को मनुष्यों जैसी नींद आती होगी क्या? नींद का प्रमाण तो ऐसा होना चाहिए कि दिन में नींद नहीं आनी चाहिए। ये तो मरे, रात में दस घंटे सोते हैं और ठेठ सूरज उगे तब तक पड़े रहते हैं। अरे! यह संसार ऐसे सोने के लिए है? दूसरी ओर कुछ अभागों को नींद ही नहीं आती है। अमरीका में अस्सी प्रतिशत लोग नींद की गोलियाँ लेकर सोते हैं। मुए, मर जाएँगे। वह तो पोइजन है। यह तो भयंकर दर्द है। चंद्रमा तक पहुँच गए, मगर तुम्हारे देश में नींद की गोलियाँ खाना कम नहीं कर सके? खरी आवश्यकता इसकी है। नींद के बिना तुम्हारे देश के लोग

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