Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ आप्तवाणी-१ १८४ आप्तवाणी-१ एक आदमी की जेब कटी। इस पर भ्रांति का न्याय क्या करता है कि जिसकी जेब कटी हो उसे आश्वासन देने निकल पड़ता है। अरर, बेचारे पर दु:ख आ पड़ा। ऐसा करके खुद भी दु:खी होता है और चोर पर सैंकड़ों गालियाँ बरसाता है। जब कि कुदरती न्याय, असल न्याय क्या कहता है? 'अरे, पकड़ो, पकड़ो इसे, जिसकी जेब कटी है उसे पकड़ो!' चोर और साहूकार, उन दोनों में से इस समय भुगता किस ने? 'जिसने भुगता, उसकी भूल।' जेब काटनेवाला तो जब पकड़ा जाएगा तब चोर कहलाएगा। अभी तो वह मज़े से होटल में चाय-नाश्ता कर रहा है न? वह तो जब पकड़ा जाएगा तब भुगतेगा। पर अभी कौन भुगत रहा है? जिसकी जेब कटी है वह। इसलिए कुदरती न्याय कहता है कि भूल इसकी। पहले इसने भूल की थी, उसका फल आज आया और इसलिए ही वह लुट गया और इसीलिए वह आज भुगत रहा है। नैचुरल कोर्ट में जो लॉ चल रहा है - नैचुरल लॉ, वही हम आज यहाँ खुल्लम-खुल्ला बता रहे हैं कि भुगते उसकी भूल। खुद की भूल की मार खा रहे हैं। पत्थर फेंका उसकी भूल नहीं, जो भुगते, जिसे लगा, उसकी भूल। आप के आस-पास के बाल-बच्चों की चाहे जितनी भूलें या अपकृत्य हों, पर आपको उसका असर नहीं होता, तो आपकी भूल नहीं है, और यदि आप पर असर होता है, तो वह आपकी ही भूल है, ऐसा निश्चित रूप से समझ लेना। जिसका दोष अधिक है, वही इस संसार में मार खाता है। मार कौन खा रहा है? यह देख लेना। जो मार खाता है वही दोषी है। जो कड़वाहट भुगते वही कर्ता। कर्ता ही विकल्प है। कोई मशीनरी खुद की ही बनाई हुई हो, जिसमें गियर व्हील होते हैं, उसमें खुद की उँगली फँस जाए, तो उस मशीन से आप लाख कहें कि भैया, मेरी उँगली है, मैंने तुझे खुद बनाया है न? तो क्या गियर व्हील उँगली छोड़ देगा? नहीं छोड़ेगा। वह तो आपको समझा जाता है कि भैया इसमें मेरा क्या दोष? तूने भुगता, इसलिए तेरी भूल। बाहर सब जगह ऐसी ही मशीनरी मात्र चलती है। ये सभी मात्र गियर-व्हील हैं। यदि गियर नहीं होते, तो सारे मुंबई शहर में कोई स्त्री अपने पति को दुःख नहीं देती और कोई पति अपनी पत्नि को दुःख नहीं देता। खुद का घर तो सभी सुख में ही रखते, मगर ऐसा नहीं है। ये बच्चे-बच्चे, पति-पत्नी, सभी मशीनरी मात्र ही हैं, गियर मात्र हैं। कुदरती न्याय तो जो गुनहगार होता है, उसे ही दंड देता है। घर में सात लोग सोए हों, पर साँप तो गुनहगार को ही काटेगा। ऐसा है यह सब 'व्यवस्थित'। 'भुगते उसकी भूल' के न्याय में तो बाहर के न्यायाधीश का काम ही नहीं। उसे किस लिए बुलवाना होता है? बाहरवाले न्यायाधीश तो बिचौलिया कहलाते हैं और बिचौलिया क्या करता है? पहले तो आकर कहेगा, 'चाय-नाश्ता लाइए'। फिर धीरे से पति, पत्नी से कहेगा 'अक्ल नहीं है कि ऐसी भूल करते हो?' बिचौलिया अपनी आबरु-अक्ल ढंककर रखता है और दूसरों की खुली करता है। इस कुदरती न्याय में तो कोई न्यायाधीश ही नहीं है। हम ही न्यायाधीश, हम ही वकील और हम ही मुवक्किल। अत: फिर वह खुद के पक्ष में ही न्याय करेगा ? इसलिए निरंतर भूल ही करता है मनुष्य। न्याय तो किस से करवाना चाहिए? ज्ञानी पुरुष के पास कि जिन्हें अपनी देह के लिए भी पक्षपात नहीं होता है। यह तो खुद ही न्यायाधीश और खुद ही गुनहगार और खद ही वकील, फिर न्याय में किस की तरफ़दारी करेगा? अपनी खद की ही। यह तो ऐसा करतेकरते ही जीव बंधन में आता जाता है। अंदर का न्यायाधीश बोलता है कि तुम्हारी भूल हुई है, तब फिर अंदर का वकील ही वकालत करता है कि इसमें मेरा क्या दोष? ऐसा करके खुद ही बंधन में आता है। खुद के आत्मा के हित के लिए जान लेना चाहिए कि किस के दोष से बंधन है? 'भुगते उसकी भूल'। उसीका दोष। देखा जाए, तो सामान्य भाषा में अन्याय है पर भगवान का न्याय तो ऐसा ही कहता है कि भुगते उसकी भूल। यह 'दादा' ने ज्ञान में जैसा है, वैसा देखा

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141