Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 63
________________ आप्तवाणी - १ प्रयोग से दखल की है, यह जानकर तुम्हें क्या लाभ है? संसार अनादिअनंत है, गोल है। गोले में आदि कैसा और अंत कैसा? अनादि अनंत है यह तो आप, बुद्धि से परे होकर ज्ञानी होंगे, तब अपने आप समझ में आ जाएगा। १०३ स्वच्छंद अर्थात् बुद्धिभ्रम, स्वच्छंद से खुद खुद का ही भयंकर अहित कर रहे हैं। अपनी-अपनी समझ से चलना, वही स्वच्छंद है। फिर चाहे वह शुभ या अशुभ कार्य में हो या शास्त्र पठन में हो। यदि शास्त्र पठन में एक उलटी समझ पैदा हो गई, तो अनंत जन्मों की भटकन का साधन खड़ा हो जाएगा। इसलिए स्वच्छंद से सावधान रहना । जहाँ विपरीत बुद्धि शुरू हो गई, वहाँ यू आर होल एण्ड सोल रिस्पोन्सिबल फॉर देट । जिम्मेवार आप ही हैं। वहाँ फिर भगवान हस्ताक्षेप करने नहीं आते। विपरीत बुद्धि तो देनेवाले को और लेनेवाले को दोनों को ही दुःखी करती है। बुद्धि के दो प्रकार, आंतरिक बुद्धि और बाह्य बुद्धि । हिन्दुस्तान के लोगों को आंतरिक बुद्धि होती है और परदेशियों की बाह्य बुद्धि होती है। आंतरिक बुद्धिवाले अधिक दुःखी होते हैं, क्योंकि जितनी अधिक बुद्धि डेवलप हुई होती है, उतना संताप बढ़ता ही है। फिर बाहर की प्रजा साहजिक है, जब कि इन्डियन्स तो कुछ बातों में साहजिक हैं और कुछ बातों को लेकर विकल्पी हैं। अध्यात्म के लिए आंतरिक बुद्धि ही काम की है। यह बुद्धि बाहर ढूंढा करती है, मगर बाहर सब जगह निरे झाड़झंखार ही हैं। भीतर खोजें तो फायदा है। लोगों की बुद्धि निरंतर बाहर घूमती रहती है, इसलिए फिर थक जाती है। मैं निरंतर अंदर ही घूमती रहे, ऐसी बुद्धि प्रदान करूँ, तब उसका काम हो जाता है। आपकी बुद्धि विपरीत है, वह सुख को निकाल बाहर करती है और दुःख को निमंत्रित करती है। आप सुख और दुःख को भी पहचान नहीं सकते हैं। बुद्धि तो वक्र ही दिखाती है। जड़ में जो अस्थायी सुख है, उसे आप्तवाणी - १ बुद्धि ग्रहण करती है। वास्तव में, वस्तु में सुख या आनंद है ही नहीं । नयी मोटरकार पर कोई चार लकीरें खींचे तो ? पिचका दे तो ? बुद्धिग्राह्य जितने भी सुख हैं, वे अंततः दुःख परिणामी हैं । वस्तु के आकर्षण को लेकर, बुद्धि उस में सुख का आरोपण करती है। वस्तुएँ अनंत हैं। अपने सुख की खोज के लिए प्रत्येक जीव किसी वस्तु को चखकर देखता है। और यह तय करता है कि किस वस्तु के प्रभाव से सुख उत्पन्न होता है? फिर उसकी खोज में निकल पड़ता है। पहले यह तय किया कि पैसे में सुख है, इसलिए पैसे के प्रभाव से सुख मिलता है। मगर फिर उसके पीछे पागल होकर घूमता है और दुःखी होता है। फिर दूसरा ऐसा नक्की करता है कि स्त्री में सुख है। स्त्री ने पुरुष को और पुरुष ने स्त्री को पसंद किया और सेक्स तथा पैसा दोनों खोज निकाला। इन दोनों वस्तुओं से सुख मिले ऐसा नक्की किया। पर यदि पत्नी विरुद्ध में जाए, तो दुःख का दावानल भड़कता है। पैसा विरुद्ध में जाए तो? एन्फोर्समेन्टवालें यदि धावा बोल दें, तो वही पैसा विरुद्ध में गया कहलाता है, जो महादुःख का कारण बनता है 1 १०४ बुद्धिभेद वहाँ मतभेद आज की दुनिया में घर में तीन सदस्य होते हैं, पर शाम होते होते तैंतीस मतभेद सामने आते हों, वहाँ हल कैसे निकले? अरे, शिष्य और गुरु के बीच में शाम तक कितने ही मतभेद हो जाते हैं। इसका अंत कैसे होगा? जहाँ पर भेदबुद्धि है, वहाँ मतभेद अवश्य होंगे ही। यदि अभेद बुद्धि उत्पन्न हो जाए, तो समझो बात बन गई। खुद निष्पक्षपाती होकर सेन्टर में बैठकर सबको निर्दोष देखे । बुद्धि उलटा दिखाए, तो तुरंत ही सम्यक् बुद्धि से हम कह दें कि जाओ निपटारा करके आओ, तो वह निपटारा कर आती है। आत्मा भ्रमित हुआ, तो संसार खड़ा हुआ। बुद्धि भ्रमित होगी, तब ज्ञान प्रकट होगा। मैं किसी की भी बुद्धि नहीं देखता हूँ, मैं तो 'समझ' देखता हूँ।

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