Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 64
________________ आप्तवाणी-१ १०५ १०६ आप्तवाणी-१ हम 'अबुध' हैं, निराग्रही हैं, नोर्मेलिटी में हैं। हमारे एक ही बाल में सारे संसार का 'ज्ञान' समाया हुआ है। जिसकी बुद्धि कम होती है, उसका हृदय नाजुक, कोमल होता है। वह करे, तब तो अपना काम निकाल ले, वर्ना उल्टा भी कर बैठे। सप्ताह में रविवार को, बस एक ही दिन, जो बद्धि का उपयोग न करे, तो वह काम निकाल ले। अगले जन्म का बीज बोना हो, तो बुद्धि इस्तेमाल करना। बुद्धि का प्रकाश बढ़ाना आपके हाथ में नहीं हैं, पर कम करना तो आपके हाथ में ही है। अतः बुद्धि का प्रकाश डिम रखना। बुद्धि सामुदायिक हितकारी नहीं होती। ज्ञान सामुदायिक हितकारी होता है। अवधान की शक्ति बुद्धि तो एक लाइन में तीन सौ जगह पर टेढ़ी होती है, पर समझ सीधी रही, तो हर्ज नहीं है। बुद्धिवाला तो ऊपर उठता है और फिर नीचे भी आ गिरता है। जब कि समझवाला, दर्शनवाला ऊपर ही ऊपर, ठेठ तक पहुँच जाएगा, मगर नीचे तो गिरेगा ही नहीं। बुद्धि प्राकृत गुण है, स्वगुण नहीं है। दर्शन स्वगुण है। तेज (पित्त) तत्त्ववालों को बुद्धि अधिक होती है और वात तत्त्ववालों की समझ गहरी होती है। जो लौकिक है, वह सब बुद्धि की कल्पना से खड़ा हुआ है। सभी धर्मों में, जिसकी कल्पना में जो-जो आया, वह शास्त्र में लिख दिया। शास्त्र बुद्धिजन्य ज्ञान ही है। उसमें चेतन नहीं मिलता। जब कि ज्ञान तो स्वयंप्रकाश है और वह ज्ञानी के हृदय में ही होता है। बुद्धि के पर्याय हैं, उसकी बोधकलाएँ अपार हैं। बुद्धि अवस्था को स्वरूप मनाने के चक्कर में रहती है। इसलिए हम कहते हैं कि बुद्धि से सावधान रहना। बुद्धि दिखाए तब 'दादाजी' को स्मरण करके कहना, 'मैं वीतराग हूँ,' ताकि बुद्धिबहन बैठ जाए। ज्ञान किसी की भूल नहीं निकालता। बुद्धि सभी की भूलें निकालती है। बुद्धि तो सगे भाई की भी भूल निकालती है और ज्ञान 'सौतेली माँ' की भी भूल नहीं निकालता। सौतेली माँ, जब बेटा भोजन करने बैठा हो, तो वह नीचे से जली हुई खिचड़ी की खुरचन परोसती है, तब बुद्धि खड़ी हो जाती हैं। वह कहती है कि सौतेली माँ ही बुरी है। निरा संताप करवाती है। पर यदि बेटे को ज्ञान मिला हो, तो ज्ञान तुरंत हाजिर हो जाएगा और कहेगा, 'वह भी शुद्धात्मा और मैं भी शुद्धात्मा हूँ और यह तो पुद्गल का खेल है, जिसका निकाल हो रहा हैं।' देह मिट्टी की बनी है और बुद्धि तेज से बनी है, इसलिए प्रकाश देती है और जलाती भी है। इसलिए ही बुद्धि को हम लबाड़ कहते हैं। अबुध होने की ज़रूरत है। बुद्धि तो मनुष्य को एबव नॉर्मल कर डालती है और कभी-कभी बिलो नोर्मल भी कर देती है। संसार में प्रत्येक वस्तु नोर्मेलिटी में चाहिए। बिना अबुध हुए नोर्मेलिटी कभी भी नहीं आएगी। कम बुद्धिवालों में द्वेष अधिक होता है। विकसित बुद्धिवालों में द्वेष नहीं होता। हम संग्रहालय देखने जाते हैं, तब किसी भी वस्तु के प्रति द्वेष करते हैं कभी? कुसंग अर्थात् बुद्धि की उठापटक, ऐसा-वैसा सोचता अवधान लिमिटेड, सीमित है। वह बुद्धि की शक्ति पर आधारित है। प्रत्येक मनुष्य अपनी बुद्धि के आशय में जो माल भरकर लाया है वही माल इस जन्म में निकलता है। उसके अलावा और कुछ नहीं है। हिन्दुस्तान के इन चोरों को चोरी करते समय एक साथ सोलह-सोलह अवधान रहते हैं। चोर मुआ, चोरी करने जाए तब बिना खाए-पीए जाता है, इससे उसकी अवधान शक्ति बढ़ती है। इसलिए चोरी कहाँ करनी है? किस पॉइन्ट पर करनी है? किस समय करनी है? पुलिसवाला कहाँ पर है? बटुवा कौन-सी जेब में है? भागना कहाँ से होगा? ऐसे तो सोलहसोलह अवधान हमारे हिन्दुस्तान के चोरों को एट-ए-टाइम रहते हैं। अवधान शक्ति पूर्णरूप से बुद्धिजन्य है, ज्ञानजन्य नहीं है। अवधान थोड़ी देर के लिए बढ़ जाता है और आधा सेर रबड़ी खा ली, तो उतर भी जाता है। ऐसा विचित्र है यह सब! ज्ञानजन्य होता, तो एक समान ही रहता है। उतार-चढ़ाव नहीं होता।

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