Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 46
________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ इस जीव को किस का बंधन है? अज्ञान का बंधन तो छूटे कैसे? जिससे बंधा है, उसके प्रतिपक्षी से, यानी कि ज्ञान से। 'मैं चंदूलाल हूँ' उसी आरोपित जगह पर राग है और अन्य जगह पर द्वेष है। अर्थात् स्वरूप के प्रति द्वेष है। एक ओर राग हो, तो उसके प्रतिपक्ष के लिए, दूसरे कोने के प्रति द्वेष होगा ही। हम स्वरूप का भान करवाते हैं, शुद्धात्मा का लक्ष बैठा देते हैं, तब उसी क्षण से वह 'वीतद्वेष' में आता है और ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों वीतराग होता जाता है। वीतराग यानी मूल जगह का, स्वरूप का ज्ञान-दर्शन। हम आपको संपूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रदान करते हैं। इसलिए आपको संपूर्ण केवलदर्शन उत्पन्न होता है और केवलज्ञान, तीन सौ साठ डिग्री का, पूर्ण रूप से पचता नहीं है, काल की वजह से। अरे! हमें ही चार डिग्री का अजीर्ण हुआ न? हम देते हैं तीन सौ साठ डिग्री का केवलज्ञान, पर वह आपको पचेगा नहीं। अतः आप अंश केवलज्ञानी कहलाते हैं। जितने अंशों तक आत्म स्वभाव प्रकट होता जाता है, उतने अंशों का केवलज्ञान प्रकट होता जाता है। सर्वांश आत्म स्वभाव प्रकट हो तब सर्वांश केवलज्ञान कहलाता है। 'भ्रांति से भ्रांति को काटना', ऐसा क्रमिक मार्ग में कहा है। जैसे कपड़ा मैला हो, तो उसका मैल निकालने को साबुन चाहिए। अब वह साबुन अपना मैल छोड़ता जाता है। उस साबुन का मैल निकालने के लिए फिर टीनोपाल चाहिए। टीनोपाल साबुन का मैल निकालता है पर अपना मैल छोड़ता जाता है। ऐसे अंत तक जिन-जिन साधनों को उपयोग में लाएँ, वे अपना मैल छोड़ते जाते है। निर्मल कभी भी नहीं हो पाता। वह तो निर्मल, ऐसे ज्ञानी पुरुष की भेंट हो, तभी निर्मल हो। ज्ञानी पुरुष जो संपूर्ण निर्मल हुए हैं, शुद्ध हुए हैं, वही आपके प्रत्येक परमाणु को अलग करके, आपके पापों को भस्मीभूत करके, केवल शुद्धात्मा आपके हाथों में रखें, तब अंत आता है। तभी मोक्ष होता है। वर्ना अनंत जन्म, कपड़ा धोते रहें और जिस साबुन से धोया उसीका मैल लगता जाता है। वाणी का विज्ञान सास सुबह से शाम तक कट-कट करती है और बहू मन ही मन झुंझलाती रहती है। वह यदि चार घंटे तक लगातार गालियाँ सुनाती रहे और हम उसे कहें कि सासजी, आप फिर से वही गालियाँ, उसी क्रम में फिर से सुनाइए तो! तो वह सुना पाएगी क्या? नहीं। क्यों? अरे, वह तो रिकॉर्ड बोला था। यह रिकॉर्ड बोले कि चंचल में अक्ल नहीं है, चंचल में अक्ल नहीं है, तो क्या चंचल रिकॉर्ड से कहेगी कि तुझमें अक्ल नहीं है?' वाणी रिकॉर्ड स्वरूप है, ऐसा स्पष्टीकरण करनेवाले हम ही हैं। वाणी जड है, रिकॉर्ड ही है। यह टेपरिकार्ड बजता है, उसमें पहले टेप उतरती है कि नहीं? उसी तरह यह वाणी की भी पूरी टेप उतरी हुई है और उसे संयोग मिलते ही, जैसे पिन रखते ही रिकॉर्ड बजने लगता है, वैसे वाणी निकलने लगती है और मुआ कहता है कि मैं बोला। वकील कोर्ट में केस जीत कर आए, तो सबसे कहता है कि मैंने ऐसे प्लीडिंग की और ऐसा करके केस जीत गया। तु जब हारता है, तब तेरी प्लीडिंग कहाँ जाती है? तब तो कहेगा कि मुझे यह दलील करनी थी, पर करनी रह गई! अरे! तू नहीं बोलता, वह तो रिकॉर्ड बोलता है। यदि जमाजमाकर बोलने जाए, तो एक अक्षर भी नहीं निकले। कईबार ऐसा होता है या नहीं कि आपने दृढ निश्चय किया हो कि सास के सामने या पति के आगे नहीं बोलना है फिर भी बोल दिया जाता है? बोला जाता है वह क्या है? हमारी तो इच्छा नहीं थी। तब क्या पति की इच्छा थी कि बहू मुझे गाली दे? तब कौन बलावाता है? वह तो रिकॉर्ड बोलता है और जो रिकॉर्ड उतर गया है उसे तो कोई बाप भी बदल नहीं सकता। कईबार कोई मन में निश्चय करके आया हो कि आज तो फलाँ को ऐसी सुनाऊँ वैसा बोल दूंगा, पर जब उसके पास जाता है, तो दूसरे पाँच लोगों को देखकर, एक अक्षर भी बोले वगैर वापस लौट जाता है कि नहीं? अरे, बोलना है, मगर बोलती बंद हो जाए, ऐसा होता है कि नहीं? यदि तेरी सत्ता की वाणी हो, तो तू चाहे वैसी वाणी निकले। पर

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