Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ आप्तवाणी-१ ८५ आप्तवाणी-१ भीतर में तो तरह-तरह की मन की गाँठें होती हैं। लोभ की, मान की, क्रोध की, सभी की गाँठे होती हैं। लोभ की तुलना में मान की गाँठ अच्छी। लोभ की गाँठ तो बहुत बुरी। मालिक को खद को भी पता नहीं चलता। जब कि मान की गाँठ तो सामनेवाले को दिखाई देती है, इसलिए कोई तो कहेगा कि अबे, क्या ऐसे सीना तानकर घूम रहा है? बड़ा अकड़ हो गया है ने? इससे मान की गाँठ का छेदन हो जाएगा। लोभ की गाँठ का भी कभी न कभी पता चल जाता है, पर कपट की गाँठ का तो कभी भी पता नहीं चलता। चंचल है मन। यदि मन में आत्मा की शक्तियाँ शामिल हों, तन्मयाकार हो जाए, तो सेबोटेज (तहस-नहस) करवा डालें। अरे! तालाब में जाकर छलाँग तक लगा दे और फिर चिल्लाए, 'बचाओ, बचाओ।' इस काल के लोगों के मन फ्रेक्चर हो गए होते हैं, इसलिए जब चोटी पर पहुंचे, तब पानी में डाल दे, ऐसा है। मन तो नाचनेवाली जैसा है। लोग कहें कि बादशाह नर्तकी को नचाते हैं। मैं कहता हूँ कि नहीं, नर्तकी बादशाह को नचाती है। वैसे ही आपका मन आपको नचाता है। दो मित्र जा रहे हों, उन में से एक को रास्ते में होटल में से माँस की सुगंध आई, उसके मन में माँसाहार की गाँठे फूटना शुरू हो जाती है, उसके अंदर चंचलता खड़ी होने लगती है, माँसाहार की तीव्र इच्छा होती है, इसलिए वह अपने मित्र से कहता है कि मैं अपने एक रिश्तेदार से मिलकर आता हूँ। तू यहाँ खड़े रहना। ऐसा झूठ बोलकर माँसाहार कर आता है। अरे! भगवान की झूठी सौगन्ध भी खाता है। गाँठ फूटे, तब सब उलटा ही बोलता है। भगवान ने इसे ही कषाय कहा है। तब वह कपट की गाँठ बाँधता है, झूठ की गाँठ बाँधता है और माँसाहार की गाँठ मजबूत करता है। अज्ञानी की एक गाँठ फूटे तब वह और दूसरी पाँच नयी गाँठे बाँधता है। इसके बजाय, जब माँसाहार की गाँठ फूटे, उस घड़ी थोड़ा ढीला पड़ जाए, तो उसका कभी न कभी छुटकारा होना संभव है। अज्ञान दशा में गाँठ से छूटता तो नहीं है, पर यदि सच बोलकर जाए कि मैं माँसाहार करने जाता हूँ, तो उसका उसे बहुत फायदा होता है। यदि मित्र खानदानी हो, तो माँसाहार से छुड़वा भी सकता है या तो कोई रास्ता दिखाएगा, समझाएगा और यदि पछतावा करता रहे, तो आखिरकार उस आदत से छुटकारा भी पा सकता है। पर ढीला नहीं पड़े और झूठ-कपट का सहारा लेकर जाए, तो कभी भी नहीं छूट पाएगा, ऊपर से कपट और झूठ की नई गाँठें बाँधता है। इसी कारण से ही भगवान ने मन-वचनकाया से चोरी नहीं करूँगा, ऐसा नियम पालने को कहा था. जिससे वह गाँठ कभी न कभी तो खत्म होगी। मन की गाँठे कैसे पिघलें? लोभ की गाँठ और क्रोध की गाँठ खुद को मार खिलाती है और सामनेवाले को भी खिलाती है। भगवान ने लोभ की गाँठ वालों को दान करने को कहा है। एक बार पाँच-पचीस रुपयों की रेज़गारी लेकर रास्ते में बिखेरते जाना। फिर मन उछल-कूद करने लगे, तो फिर से डालना फिर मन धीरे-धीरे चुप हो जाएगा। यदि सोच-समझकर लोभ की गाँठ छेदी जाए, तो उसके समान और कुछ भी नहीं। यदि सोचें कि इतना सारा जमा करता हूँ, यह सब किस के लिए? अपने कौन-से सुख के लिए? खुद का (आत्मा का) सुख प्राप्त नहीं करते, परायों के लिए अपना सुख हम खो देते हैं और ऊपर से जो जो गुनाह किए हों, उनकी दफाएँ लागू होती हैं। जब कि ज्ञानी पुरुष के गाँठ फूटती है, तब वे तो गाँठ को देखते और जानते हैं। ज्ञानी पुरुष की आज्ञा से, शुद्धात्मा दृष्टि से मन की गाँठो के ऊपर दृष्टि रखने से, गाँठे धीरे-धीरे पिघलती जाती हैं। हमारे पास तो अनंत सिद्धियाँ हैं इसलिए आपकी गाँठे पिघला सकते हैं, पर जहाँ तक संभव हो, हम सिद्धियाँ व्यर्थ नहीं खर्च करते हैं। हम आपको रास्ता बतलाएँगे। उन गाँठों के फूटने पर आपको एक्सपीरियन्स होता है और आपको फिल्म देखने को मिलती है। यदि ज्ञेय नहीं रहा, तो ज्ञाता क्या करेगा? जितना मन खिले उतना ही आत्मा खिलता है। जितने ज्ञेय बढ़ते

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141