Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 24
________________ आप्तवाणी - १ 'चंदूलाल' के जागते ही इफेक्ट शुरू हो जाता है 'मुझे ऐसा कहा था, ' तो फिर उसे मिथ्या कैसे कहा जाए? हम कहते हैं कि संसार भी सत्य है और ब्रह्म भी सत्य है। संसार रिलेटिव सत्य है और ब्रह्म रियल सत्य है। यह हमारी त्रिकाल सत्वाणी है। संसार का यह रिलेटिव, सत्य कब असत्य हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता। ऑल दीज रिलेटिव्ज़ आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स और ब्रह्म रियल सत्य है, परमानेन्ट है, शाश्वत है। मन-वचन-काया का भूतावेश प्रत्येक मनुष्य को मन-वनच काया, इन तीनों का भूतावेश है। इसलिए वह बोलता है, 'मैं चंदूलाल हूँ, कलक्टर हूँ, इसका इसका स्वामी हूँ, इसका बाप हूँ।' भैया ! क्या सदा का कलेक्टर है? तब कहे, 'नहीं रिटायर होनेवाला हूँ न ?' तो यह नया भूतावेश. कोई शराबी शराब पीकर गटर में लुढ़ककर क्या बोलता है, 'मैं सयाजीराव गायकवाड़ हूँ, मैं राजा हूँ, महाराजा हूँ।' इस पर हम समझ जाते हैं कि वह नहीं बोल रहा है। पर यह शराब का नशा बोल रहा है। वैसे ही मन वचन काया के तीन भूतों का भूतावेश है। इसलिए उनका अमल (नशा) बोल रहा है, 'मैं चंदूलाल हूँ, कलक्टर हूँ' और उसके नशे में वह झूमता है। - एक सत्य घटना बताता हूँ। काशी नाम की एक महिला थी जो पड़ोसनों के साथ हँसी-ठिठोली कर रही थी और फिर एकदम से वह आवेश में हिलने लगी और विचित्र रूप से आँखें घुमाने लगी। इससे सभी घबरा गए। उनमें से एक ने कहा, 'इसे तो भूतावेश है, ओझा को बुलाइए।' उसका पति फिर ओझा को बुला लाया। ओझा ने तो देखते ही भाँप लिया कि इसे भूतावेश है। इसलिए उसने तो सट सट चाबुक मारना शुरू कर दिया। वह महिला चिल्लाने लगी। तब ओझा ने पूछा, 'कौन है तू?' काशी ने जवाब दिया, 'आई एम चंचल, आई एम चंचल ।' ओझा समझ गया। उसने पूछा, 'क्यों आई है तू?' इस पर काशी बोली, 'इस काशी ने मेरे पति को अपने रूप में फँसाया है।' अरे! काशी को तो अंग्रेजी की ए-बी-सी-डी तक नहीं आती और यह फर्राटे से अंग्रेजी २६ आप्तवाणी - १ कैसे बोल रही है, 'आई एम चंचल, आई एम चंचल।' फिर जाँचपड़ताल करने पर पता चला कि चंचल अंग्रेजी पढ़ी-लिखी थी और अच्छी अंग्रेजी बोलती थी। फिर ओझा ने उसे मारा, बहलाया, फुसलाया और फिर उसके बताए अनुसार चीजें गाँव के सीमावर्ती बरगद के पेड़ के कोटर में छोड़ आया और चंचल को भूतावेश से मुक्ति दिलाई। ऐसा है यह भूतावेश। चंचल तो चली गई, पर वह साँटे बनी रहीं । मार के निशान बने रहे काशी के शरीर पर उस बेचारी को जलन और पीड़ा होती रही, घाव भरने तक । ये मन-वचन-काया के तीन भूत जो आपको लगे हैं, उनके हम ओझा हैं। उन तीनों के भूतावेश से हम आपको मुक्त करा देते हैं। हाँ, जब तक घाव भरेंगे नहीं, तब तक उनका असर रहेगा, पर भूतों से आप सदा के लिए मुक्त हो जाएँगे। ये मन-वचन-काया भूतावेश हैं, इतना यदि तू समझ गया, तो पैंतालीस में से पच्चीस आगम (जैनों के शास्त्र) तूने पढ़ लिए। घर-गृहस्थी, बीवी-बच्चे या कपड़े छोड़ना ज़रूरी नहीं है। इन तीनों भूतों का भूतावेश है, उनसे ही छूटने की ज़रूरत है। आगम निगम आगम (शास्त्र) तो बिना गुरु के पढ़े ही नहीं जाने चाहिए। आगम की गम ( समझ), ज्ञानी को ही होती है। खुद अगम, उसे आगम की थाह कैसे मिले? हमें तो आगम निगम सब सुगम ही होते हैं। पूरण- गलन रिअल 'मैं' को खोज निकाल। 'मैं, मैं क्या करता है? यह बकरी भी 'मैं-मैं' करती है और तू भी 'मैं हूँ, मैं हूँ' करता है। ऐसा किसे कहता है ? इस देह को, देह तो पूरण- गलन है। चढ़ना-उतरना तो संसार का स्वभाव है। हर किसी का मानना है कि पैसे जमा करने चाहिए। पर वह

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