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आप्तवाणी-१
आप्तवाणी-१
सुलझ गई हैं। इन सभी में सबसे कम जन्म उस गधे के होनेवाले हैं, ऐसा हम अपने ज्ञान में देखकर कहते हैं। क्योंकि, आचार्य महाराज, आपने अनेक शास्त्र पढ़े हैं, उनका मानसिक बोझ उतारने में आपके कई जन्म लग जाएँगे और उस गधे को तो अगले जन्म में ज्ञानी पुरुष की भेंट होगी और उसका मोक्ष हो जाएगा।
कैफ़ और मोक्ष मानसिक बोझ कैफ़ (नशा) है। जितना कैफ़ कम होगा, उतना जल्दी मोक्ष होगा।
कैफ़ी का मोक्ष कभी भी नहीं होता। मैं कुछ जानता हूँ' यह तो बड़ा भारी कैफ़ है। नींद में भी वह कैफ़ रहेगा। मोक्ष तो निष्कैफी का होता है। कैफ़ी का कभी भी नहीं होनेवाला। ये शास्त्र पढ़े, धारण किए वह मोक्ष के साधन हेतु है या कैफ़ बढ़ाकर, भवचक्र में भटकने का साधन किया? शराबी का कैफ़ तो पानी छिड़कते ही तुरंत उतर जाता है, पर 'मैं कुछ जानता हूँ', ऐसा, शास्त्रों के पठन का कैफ़ कभी भी नहीं उतरता।
मन-वचन-काया की बला चेहरे पर यदि एक बाजरे के दाने जितनी फुसी हुई हो, तो वह मुर्ख, बार-बार आईने में चेहरा देखा करता है, क्योंकि वह मानता है कि मैं ही 'चंदूलाल' हूँ। यानी देह को भी 'मैं ही हूँ', मानता है। इसलिए वह, शीशा देखता रहता है। पर यह देह तुम्हारी नहीं है। देह तो बला है। कोई लड़का, किसी लड़की को लेकर घूमता हो और बाप कहे कि यह बला कहाँ से लगाई है? इस पर लड़का कहता है, 'क्या कहते हैं? वह क्या बला है? आप क्या समझें इसमें?' पर थोड़े दिनों बाद उस लड़की के साथ अनबन हो जाए और वह लड़की दूसरे के साथ घूमती नज़र आए, तब उसकी समझ में आता है कि वह तो बला थी। वैसे ही. यह देह भी बला है। देह का अनुभव गया, तो बस बला भी गई। बला भरोसे के लायक होती ही नहीं, दगा ही देती है। यह मन-वाणी और
देह का कैसा बंधन है? बंधन यानी? जिनसे छूटना चाहें, तो भी नहीं छुट पाएँ। दूसरे शब्दों में बंधन ही बला है। जब से जान लिया कि यह बला है, तब से छूटने का उपाय खोजता है। पर यदि बला को ही प्रिय माना तब? तब वह और ज्यादा लिपटती जाती है और फिर बहत बरी तरह फँस जाता है। बला, राग-द्वेष के अधीन है। उसे मार-पीटकर थोड़े ही निकालना है? वीतरागता से निकालना है, अहिंसा से निकालना है। यह मन-वचन-काया बला जैसे ही हैं। उसे पूर्णरूप से 'देखा और जाना' कि वह अपने आप छूटते चले जाते हैं।
मोक्ष ही उपादेय है मोक्ष का ही आग्रह रखने जैसा है। और सब जगह निराग्रही हो जा। वस्तु जहर नहीं है, पर तेरा आग्रह ही जहर है। हम यह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जितने भी मेहनत के मार्ग हैं, वे सभी संसारमार्ग हैं। मोक्ष की ही इच्छा करने योग्य है। मोक्ष का विचार यदि एक बार भी आया हो, तो लाख जन्म में भी ज्ञानी पुरुष आ मिलेंगे और तेरा मोक्ष होगा। मोक्ष अर्थात् 'मुक्तभाव' सभी सांसारिक दुःखों से मुक्ति । मेहनत तो संसार के लिए होती है, मोक्ष के लिए नहीं होती। मोक्ष तो खुद का स्वभाव ही है। आत्मा का स्वभाव ही मोक्ष स्वरूप है। जैसे पानी का स्वभाव ठंडा है। उसे गरम करने में मेहनत करनी पड़ती है, पर क्या ठंडा करने में मेहनत करनी पड़ती है? नहीं करनी पड़ती, वह तो अपने आप ही, उसके स्वभाव से ही ठंडा हो जाएगा। मगर यह बात समझ में कैसे आए? खुद का स्वभाव ही मोक्ष स्वरूप है, यह नहीं समझने का कारण यही है कि बड़ी ज़बरदस्त भ्राँति बरतती है। वह भ्राँति किसी काल में जाए ऐसी नहीं है। वह तो ज्ञानी पुरुष की भेंट हो तो पार आए। इसलिए ज्ञानी पुरुष को खोजना! सजीवन मूर्ति को खोजना!
जो खुद छूट चुके हैं, उन्हें खोजना। खुद तरे हैं और अनेकों को तारने का सामर्थ्य जिनमें है, ऐसे तरणतारण ज्ञानी पुरुष को खोजना और उनके पीछे-पीछे निर्भय होकर चले जाना। इस काल के हम अकेले ही तरणतारण हैं। गज़ब का ज्ञानावतार है। घंटेभर में मोक्ष दे दें, ऐसे हैं। तुझे