Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 37
________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ हैं। जब कि हिन्दुस्तान के लोगों के क्रोध-मान-माया-लोभ फुल्ली डेवलप हो गए हैं, टॉप (शिखर) पर जा पहुँचे हैं। ___ फ़ॉरेन में आपकी जान-पहचानवाला कोई हो और आप उनसे कहें कि यहाँ से पचास मील दूर जाना है, तो वह आपको अपनी कार (गाड़ी) में ले जाएगा, वापस लाएगा और ऊपर से रास्ते में होटल का बिल भी वही चुकाएगा। जब कि यहाँ आपके चाचा के लड़के से कार माँगेंगे, तो वह हिसाब लगाएगा कि पचास मील जाने के और पचास मील आने के, कुल मिलाकर सौ मील हुए। पेट्रोल का खर्च इतना, ऑइल-पानी का खर्च इतना और ऊपर से कार की घिसाई का हिसाब लगाकर फिर झूठ बोलेगा कि कल तो मेरे साहब आनेवाले हैं! ऐसा क्यों है? पहलेवाले का लोभ ही डेवलप नहीं हुआ और इसका फुल्ली डेवलप हो गया है। सात पुश्तों तक का डेवलप हो गया है। जब कि वहाँ की प्रजा का लोभ कितना डेवलप हुआ होता है? खुद तक ही सीमित। पति और पत्नी तक ही सीमित । बेटा अट्ठारह साल का हुआ कि तू अलग और हम अलग। और यदि पत्नी के साथ जरा-सा टकराव हुआ, तो फिर, तू अलग और मैं अलग, तुरंत ही डायवोर्स। जब कि हमारे यहाँ तो ममता ठेठ तक डेवलप हुई होती है। एक अस्सी साल की बुढ़िया और पचासी साल का बुड्ढा सारी जिंदगी रोज़ लड़ते-झगड़ते थे, रोजाना किटकिट चलती थी और एक दिन बुड्ढा मर गया तब बुढ़िया ने तेरहवीं के दिन उत्तरक्रिया में शैय्यादान करते समय, तेरे चाचा को यह भाता था और तेरे चाचा को वह पसंद था, ऐसा याद करके रखवाया। मैंने कहा, 'क्यों चाचीजी आप तो रोज लड़ती थीं न? तब चाची बोलीं. 'ऐसा ही होता है। मगर तेरे चाचाजी जैसे मुझे फिर नहीं मिलेंगे। मुझे तो हर जन्म में वही चाहिए।' ममता भी टोप पर पहुँची हुई होती है। प्राकृतिक साहजिकता फ़ॉरन की प्रजा साहजिक होती है। साहजिक अर्थात्, यदि नहीं मारनेवाली गाय हो, तब अगर छोटा बच्चा भी उसका सींग पकड़े, तो भी नहीं मारेगी और मारनेवाली गाय रही, तो उसे कुछ न करें, तो भी वह मारेगी। इस प्रकार उन लोगों का ऐसा साहजिक होता है। उसे. आपको ले जाना हो, तो तुरंत हाँ कर देगा और न ले जाना हो, तो तुरंत मना भी कर देगा। पर झूठ-वूठ नहीं बोलेंगे। उनमें दोनों ओर का होता है। सीधे, तो एकदम सीधे और टेढ़े, तो हर ओर से उतने ही टेढ़े। भारतीय लोग असहज। हिन्दुस्तान में साहजिकता थी, पर वह सतयुग के समय में थी। और वह सही मानों में आदर्श साहजिकता थी। भारत में पहले लोग चार वर्ग में बँटे थे, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, जो कि डेवलपमेन्ट दर्शाते थे। अब तो डेवलपमेन्ट टोप पर गया है। सुतार के बेटे भी उतने ही कुशल। साहजिकता उन दिनों परिपूर्ण थी, इसलिए देश इतना ऊपर उठ गया था। फिर वहाँ से धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा। यही नियम है। जो चार वर्ग थे, उनका लोगों ने दरुपयोग किया. जैसे कि हरिजनों का तिरस्कार किया। बुद्धि का इतना ज्यादा, तीक्ष्ण दुरुपयोग किया कि वे असहज होते गए और भारत का सूरज अस्त हो गया। भयंकर दुराग्रही हो गए। निम्नतम कोटि के, राक्षसी कोटि के आचार हो गए थे। अरे! कोई बीस साल की विधवा मिले, तो बेचारी को शांति देने के बजाय अपशकुन हुए, ऐसा कहते ! मुए, विधवा अर्थात् गंगास्वरूप! उससे अपशकुन कैसे हो सकते हैं? बाद में फिर अंग्रेज आए। इसलिए उनकी सहजता का मिश्रण हुआ। परिणाम स्वरूप यहाँ के लोगों को कुछ ठंडक हुई। यह तो सब एक्सेस हो गया था, उसके परिणाम थे। अब भारत का सूर्य उग रहा है। इस समय फ़ॉरेन में सब जगह संध्या के पाँच बजे हैं और यहाँ भारत में प्रातः के पाँच बजे हैं। हम १९४२ से कहते आए हैं कि २००५ के साल में हिन्दुस्तान संसार का केन्द्र हो गया होगा। इस समय हो रहा है। फिर फ़ॉरेन से प्रजा यहाँ यह पढ़ने आएगी कि जीवन कैसे जीना? नोर्मेलिटी किसे कहते हैं? वे इस हद तक ऐबनोर्मल हो गए हैं कि जीवन जीना तक नहीं आता। भौतिक सुखों की इतनी भरमार हो गई है कि रात में नींद की गोलियाँ खाकर सोना पड़ता हैं। अरे! ज़हर

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