Book Title: Aptavani 01
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 43
________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ ३) ज्ञानगर्भित वैराग्यः यही यथार्थ स्वरूप वैराग्य है। ज्ञानहेतु वैराग्य ले, वह। ज्ञान के लिए वैराग्य लेनेवाला कोई एकाध होता है, पर ज्ञान मिलना बहुत कठिन है। ज्ञान तो ज्ञानी के पास जाने पर ही मिले, ऐसा है। और उसके बाद ही ज्ञानप्रकाश से यथार्थ वैराग्य उत्पन्न होना शुरू होता है। लोगों को गुलाब चाहिए, पर काँटे पसंद नहीं, बिना काँटो के गुलाब कैसे होंगे? ये नीबू बोते हैं, वह कैसे पनपता है? पृथ्वी, जल, वायु, तेज और अवकाश इन तत्त्वों से पनपता है। पोषण मिले. तो उस पोषण में स्वाद है? खट्टा रस है? नहीं, फिर वह खटापन आया कहाँ से? उसके पास ही कड़वा नीम बोया हो, उसके पत्ते-पत्ते में कड़वाहट कहाँ से आई? पोषण तो दोनों को पाँच तत्त्वों का सरीखा ही दिया गया था। क्या पानी कड़वा था? नहीं। तो यह कैसे हुआ? वह तो बीज में ही खट्टापन और बीज में ही कड़वाहट थी, इसलिए ऐसा फल आया। बरगद का बीज राई से भी छोटा होता है, और बरगद कितना विशाल होता है? उस बरगद के बीज में ही सारा बरगद, डालियाँ, पत्ते और बरोहों के साथ सूक्ष्म रूप से होता है, शक्ति के रूप में होता है। फिर व्यवस्थित शक्ति, संयोग इकट्ठे कर देती है और बीज बरगद के रूप में परिणमित होता है, जो उसके प्राकृत स्वभाव से ही है। ऐसा गजब का प्रकृति ज्ञान है। नदी के पार जा सकते हैं, पर प्रकृति के पार नहीं जा सकते, ऐसा है। वैराग्य के प्रकार वैराग्य के तीन प्रकार है: १) दुःखगर्भित वैराग्यः दुःख के मारे संसार छोड़कर भाग जाते हैं और बीवी-बच्चों को कहीं का नहीं रखते। संसार में गुजारा नहीं होता हो, तो सोचता है कि चलो, वैराग्य लेंगे, तो दो टाइम खाने को तो मिलेगा न? अकेले नंगे पैर चलना और माँगकर खाना इतना ही कष्ट न? वह तो देखा जाएगा। ऐसा सोचकर वैराग्य लेता है, फिर उसका परिणाम क्या आता है? कई जन्मों तक भटकता ही रहना पड़ता है। २) मोहगर्भित वैराग्यः शिष्य मिलेंगे, मान मिलेगा, कीर्ति मिलेगी, वाह-वाह होगी, लोग पूजा करेंगे, उस लालच से वैराग्य ले ले, तो उसका फल भी संसार में भटकन ही है। आत्मा का उपयोग आत्मा के उपयोग के चार प्रकार हैं: १) अशुद्ध उपयोगः कोई मनुष्य बिना किसी स्पष्ट कारण के हिरण का शिकार करे और वह केवल शिकार का आनंद के लिए ऊपर से गर्व करता है कि मैंने कैसा मार गिराया? बिना हेतु के मौज मनाने को ही मारना, वह आत्मा का अशुद्ध उपयोग। किसी का घर जलाकर गर्व करे, गलत काम करके खश हो, सामनेवाला का नुकसान करके फिर मूछों पर ताव दे- ये सभी थर्ड क्लास के पैसेंजर जैसे हैं। उसका फल नर्कगति। २) अशुभ उपयोगः घरवाले कहें कि आज तो हिरण लाकर खाना ही पड़ेगा,क्योंकि घर में और कुछ खाने को है ही नहीं। अत: बीवी-बच्चे भूख से तड़पतें हों, तब वह कोई हिरण मारकर घर में ला दे, पर मन में उसे अपार दुःख होता हो, पश्चाताप होता हो कि मैंने किया सो गलत किया। वह आत्मा का अशुभ उपयोग। अशुद्ध और अशुभ उपयोग में क्रियाएँ एक समान ही होती हैं, फिर भी, एक की गई क्रिया का गर्व करता है, आनंद मनाता है, जबकि दूसरा पश्चाताप के आँसू बहाता है। इतना ही अंतर। ये सभी अशुभ उपयोगवाले जीव सैकिन्ड क्लास के पैसेंजर जैसे हैं। वे तिर्यंचगति बाँधते हैं। ३) शुभ उपयोग: शुभ उपयोग में घरवाले भूख से तड़पते हों, फिर भी वह तो ऐसा ही कहता है कि किसी को मारकर मुझे भूख नहीं मिटानी। वह आत्मा का शुभ उपयोग। परायों के लिए शुभ भावना रखना,

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