Book Title: Anuyogdwar Churni
Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
View full book text ________________
श्रीअनुका
संग्रहेणानुगमः
॥॥
समोतारे' त्यादि (९४-७१) सूत्रसिद्ध, यावत् 'संगहस्स आणुपुश्विव्वाई आणुपुग्विदव्वेहि समातरंति' तज्जाती वर्तन्ते, आनुपूर्वी| स्वेन भवन्तीत्यर्थः, एवमनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्यचिन्तायामपि भावना कार्या, पाठान्तरं वा 'सट्ठाणे समोतरति ' स्वस्थानं तस्मिन् समवतरंतीति, अत्राह-जं सहाणे समोतरंतीति भणह, किं तं आतभावो सट्ठाणं परदवं वा समभावपरिणामत्तगओ सट्ठाणं ?, जदि आतभावो सट्टाणं | तो आतभावे ठितत्तणतो समोतारो भवति, अह परदव्वं तो आणुपुब्विव्वस्त अगाणुपुब्विअवत्तव्वगदवावि मुत्तित्तवण्णादिएहिं समभाव| त्तणतो सट्ठाणं भविस्संति, एवं चोदिते गुरू भगति-सव्वदव्या आतभावेसु वणिज्जमाणा आतभावसमोतारे भवंति, जतो जीवदव्वं जीवभाPावेसु समोतरिज्जइ णोऽजीवभावसु, अजीबदम्बंपि अजीवभावसु न जीवभावेवित्यर्थः, परदव्वंपि समभावविसेसादिसामन्नत्तगओ सट्टाणं शघेप्पइत्ति ण दोसो, इह पुग अधिकारे आणुपुब्बिभावविसेसत्तगओ आणुपुब्धिदब्वपक्खे समोतरतित्ति सट्टाणं भणितं, एवं अणाणुपुब्वि
अवत्तब्बेसुवि सहाणे समोतारो भाणियब्यो इति, सेत' मित्यादि, निगमनं । से कितं अणुगमे ?, अणुगमे अट्ठविहे पण्णत्ते, का तंजहा- सन्तपद' गाहा (९-७१) णवर अप्पाबह णस्थि' ति (९५-७१) विशेषत इयं च नयान्तराभिप्रायतो व्याख्यातेव, | य एवेह विशेषोऽसावेव प्रतिद्वारं प्रतिपाद्यत इति, तत्र 'संगहस्से' त्यादि, ग्रन्थसिद्धमेव, यावन्नियमा एको रासी, एत्थ सुत्तुञ्चारणसमणंतरमेव आह चोदकः--णणु दबप्पमाणे पुढे असिलिट्ठमुत्तरं, जओ एको रासित्ति पमाणं कहियं, जो बहूणं सालिबीयाणं एको रासी भण्णति, एवं बहूणं आणुपुब्बियाणं एको रासी भविस्लति, बहू पुग दया पडिवजितव्या, आचार्य आह--एकरासिग्रहणण बहुसुवि |आणुपुब्बिदब्वेसु एकं चेव आणु धिभावं दसति, जहा भूपु कठीण मुत्त तं, आइवा जहा बहवो परमाणवो खंबत्तभावपरिणता एगखंधो भण्णति, एवं बहुआणुपुब्विव्या आणुपुब्धिभावपरिणयत्तणतो एगाणुवित्तं एगत्तणओ एगो रासीति भणितं न दोसो, 'संगहस्स आणु
CANARACK
॥४०
Loading... Page Navigation 1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222