Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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कुलमण्डनसूरिकृताः समस्याश्लोकाः
- सं. उपा. भुवनचन्द्र
जैन श्रमणोनी विद्योपासनानो मूलभूत उद्देश आगमशास्त्रादिना अभ्यास द्वारा तत्त्वज्ञान / धर्ममार्गनी समज विशद करवी - एवो ज रह्यो छे, परन्तु एनी पूर्वतैयारीरूपे संस्कृत ! प्राकृत / छन्द / तर्कशास्त्र । विविध भाषाओनो अभ्यास करवानो थाय अने ए विद्या-व्यासंगनो विनियोग प्रभुभक्ति । ज्ञानप्रसार / संघसेवाना क्षेत्रे सहेजे थाय. आना परिणामरूपे स्तोत्र / प्रकरण / नूतन सर्जन पण जैन श्रमणोना हस्ते थतुं रडुं छे. विद्वत्ता नव-नवा रूपे झळक्या विना न रहे.
विद्वानोने प्रिय एवो एक साहित्यप्रकार छ : कूटकाव्य-चित्रकाव्य-प्रहेलिकापादपूर्ति-समस्याकाव्यो. राजसभाओमां के विद्वत्सभाओमां वाद-वितण्डा-शास्त्रार्थ थता, तेम नवराशनी पळोमां मनोरंजन माटे । बुद्धिविलास रूपे समस्या-पादपूर्ति वगेरे बौद्धिक व्यायाम पण थता. कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य, बप्पभट्टिसूरि आदि प्रखर प्रतिभाओ द्वारा रचायेली आ प्रकारनी रचनाओ उपलब्ध छे. कूटकाव्य, पादपूर्तिरूप रचनाओ पुष्कळ मळे छे.
एक ज कवि द्वारा प्रसंगे प्रसंगे रचायेल समस्याश्लोकोना संग्रहरूप एक कृति अमने अमर जैनशाला - खम्भातना ह.लि. भण्डारमाथी मळी छे. रचयिता छ कुलमण्डनसूरि. एमनो समय छे विक्रमनी पंदरमी शताब्दी. आ विद्वान साहित्यकार आचार्यनी अन्य कृतिओ उपलब्ध छे. 'मुग्धावबोध औक्तिक' ए गूर्जरभाषाना प्राचीन व्याकरणरूप रचना आ आचार्यनी प्रसिद्ध कृति छे. सिद्धान्तालापकोद्धार, विचारमृतसारसंग्रह तथा केटलीक अवचूर्णिओना पण तेओ कर्ता छे. अष्टादशचित्रचक्रविभूषित वीरस्तव, पञ्चजिन हारबन्धस्तव जेवी क्लिष्ट-कूट कृतिओ पण तेमणे रची छे. प्रस्तुत 'समस्याश्लोको' तेमना नामे क्यांय नोंधाया नथी, तेथी आ स्तवना अहीं सर्वप्रथम वार प्रगट थाय छे - एम कही शकाय.
प्रति ३ पानानी छे अने कर्ताना समय पछी तरत (कदाच विद्यमानतामां) लखाई होय एवो सम्भव छे, अने तेथी ज सम्पूर्णपणे शुद्ध छे. मात्र श्लोकाङ्क लखवामां गरबड छे. अहीं अमे नवेसरथी श्लोकोने क्रमाङ्क आप्या छे.
___ आ श्लोको भिन्न भिन्न प्रसंगोए रचाया हशे. आचार्यना शिष्य-प्रशिष्ये

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