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जान्युआरी - २०१८
षट्पदी छे ते 'द्रूपद-ध्रुपद'मां गावानो संकेत प्रारम्भमां थयो छे. वा. सकलचन्द्रजीए पोतानी पूजामा प्रथम ढाळ ने पछी गीत एम १७ x २ = ३४ गीतो रच्यां छे तेनुं मूळ आ रचनामां होवानुं जोई शकाय. अहीं रागमाला नथी ते अलग बाबत छे, पद्धति एक ज. देखीती रीते आ रचना सकलचन्द्रजीकृत पूजा करतां पहेलांनी छे. __ आ रचनामां केटलाक शब्दो अने क्रियापदोनो प्रयोग भाषादृष्टिए ध्यानार्ह छे.
२. बीजी रचना 'अष्टप्रकारी पूजा' छे. तेना कर्ता 'ज्ञान-उद्योत' नामे छे, जेनो छेल्ली 'अर्घ' स्वरूप ढाळमां चोथी कडीमा उल्लेख थयो छे. अंचलगच्छना आ. ज्ञानसागरसूरिना उद्योतसागर थया छे, तेमनी आ रचना छे. तेओ सं. १७४० मां विद्यमान होवा- 'जैन गुर्जर कविओ' (भाग ४, ६५) नोंधे छे. प्रस्तुत रचना सं. १७२४मां रचाई होवा- 'संवत गुणगण अचल इंदु' ए पंक्तिथी जणाय छे.
__ पूजानी भाषा मिश्र हिन्दी (मारुगूर्जर?) अने मिश्र संस्कृत छे. प्रत्येक पूजा ४ भागे वहेंचाय छे : दूहो, ढाल, श्लोक, काव्य. पछी मन्त्र आवे छे. 'श्लोक' आम तो संस्कृत पद्य माटे प्रयोजाय, पण अहीं ते गुजराती पद्य माटे प्रयोजायो छे. कर्तानो आन्तरिक ढळाव अध्यात्म तरफ छे अने तत्त्व-प्रतिपादननो छे ते पूजानो अभ्यास करतां जाणी शकाय छे.
आजे जैन मन्दिरोमां प्रचलित धर्मानुष्ठानोमां, ‘हर्ष भरी अप्सरावृंद आवे' ए तथा 'विमलकेवलभासनभास्कर' ए बे पद्यो सर्वत्र बोलातां होय छे, ते बन्ने उद्योतसागर कविना रचेला होवा, आ पूजानी प्रथम जलपूजा वांचतां जाणवा मळे छे. क्यारेक कोईक रचना एटली लोकभोग्य बनी जाय छे के पछी ते, लोकगीतनी माफक, लोकप्रिय बनी जाय अने तेना कर्ता कोण - ए वीसराई जाय. कविना भावजगत्नी आ मोटी सिद्धि ज गणाय.
३ पत्रोनी आ प्रति नेणचन्द्र नामना साधु द्वारा सं. १८७२मां नीमच गामे लखाई छे. एक कल्पना एवी पण थई शके के 'हर्ष भरी अप्सरावृंद आवै', इत्यादिमां मूल रचनाकारे 'आवे' 'भावे' 'टले' 'चरचो' एम ज लख्युं हशे, परन्तु नीमच (म.प्र.)ना लेखके त्यांनी लखावटमां तथा बोलीमा ढाळीने 'आवै', 'भावै', 'टलै' 'चरचौ' एवं लख्युं हशे.
बन्ने पूजाओ अत्रे प्रथम वार प्रकाशित थई रही छे.