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अनुसन्धान-७४
रचना छे । जो के कृतिनुं साद्यन्त निरीक्षण करता कविए काव्यरचनाना मूळ विषयने थोडो गौण करीने पण सूरिजीना जीवनचरित्रनी घणी घटनाओ अहीं रजू करी छे एम जाय छे । आम करवा पाछळना कारणमां एवं विचारी शकाय के जो फक्त पदप्रदान प्रसंगनुं वर्णन एकलुं गुंथवामां आवे तो तेमां अन्य प्रसंगोथी उमेराती रसाळता ओछी थई जाय । बीजुं जेमना पदप्रदाननुं वर्णन काव्यमां छे तेमना जीवनचरित्र थी अज्ञात जीवोनो तेमना प्रत्येनो बहुमान भाव जो नहिवत् होय तो कृतिवांचनमां पण आनन्द न आवे । अथवा त्रीजुं आना पूर्वे १५ मी शताब्दीमां कवि समयप्रभ उपाध्याये रचेली जिनभद्रसूरि-पट्टाभिषेक रासनी रचनानुं बंधारण जोई आ कृतिमां पण कविए ए प्रमाणे प्रसंगोनी सांकळ करी होय । जो के ए माटे ए रास जोवो घटे ।
आगळ आपणे जोई गया तेम अहीं घणी खरी ढाळो जुदा जुदा रागमां, जुदी जुदी देशीओमां छे । तो ढाळ पूर्वेना दूहाओमां पण कविए जुदा-जुदा रागो पसंद कर्या छे । तेथी ते अंगे फरी फरी न लखता आपणे फक्त ढालोनो क्रमबद्ध परिचय मेळवीशुं ।
कविए मंगलाचरणना प्रारम्भमां मां सरस्वतीने नमस्कार करी गुरुगुण स्तववा तेमनी कृपानी अभिलाषा व्यक्त करी छे. गुरुभगवन्तनुं जीवनमां स्थान शुं ? तेमनो प्रताप शु ? तेवी सुन्दर वातो कवि बीजा, त्रीजा, चोथा पद्यमां रजू करे छे । पांचमा दूहामा 'शुद्ध परम्परा' नो उल्लेख करी कविए ते शुद्ध परम्पराना आचार्योनी सुधर्मास्वामी थी शरु करी पोताना दादागुरु हीरविजयसूरिजी सुधीनी परम्परा प्रथम ढाळमां आलेखी छे । खास तो ढाळनी २२मी गाथामां कविए प्रयोजेलुं 'गौवध जेणइ निवार्यउ' ए पद विशेष ध्यानार्ह छे ।
विजयसेनसूरिजीनी गुणवर्णनानी साथै सूरिजीना माता-पिता तथा अकबरना नामोल्लेखवाळी विगतो बीजी ढाळमां आलेखाई छे । तो त्रीजी ढाळमां कवि विजयदेवसूरिजीना गुणवैभवथी प्रभावित बादशाह जहांगीर द्वारा अपायेल 'महातपा ' बिरुदनी सिद्धचल - गिरनार तीर्थयात्रानी, सूरिजीना माता - पिताना नामनिर्देश रूप पद्योनी दस्तावेजी सामग्री पूरी पाडे छे । जाणे शुद्ध परम्परा शब्दनी व्याख्या करता होय तेवुं वर्णन कविए ३८ थी ४२ पद्यो द्वारा रजू कर्तुं छे । ज्यारे बाकीनां पद्यो द्वारा तेओ प्रस्तुत काव्यरचनाना प्रयोजनने जगावे छे ।
जीवनचरित्रनी मूळ वातो चोथी ढाळथी शरु थई छे । जेमां सौ प्रथम गुरु भगवंतना जन्मना मरुधर राज्यनुं, त्यांनी प्रजानुं, नाना-मोटां तीर्थस्थानोनुं, जिनप्रासादोनुं तथा श्रावको द्वारा कराती धर्माचरणानुं स्वरूप अनुक्रमे जोवा मळे छे । पूर्वनी ढाळनी जे पांचमी ढाळमां गुरुजन्मस्थान मेडतानुं, त्यांनी प्रजानुं, प्रासादोनुं, व्यापारीओनुं, उपाश्रयनुं, लोकोना दानादि गुणोनुं तथा पासेनां तीर्थो वगेरे बाबतोनुं वर्णन छे । आ