Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 76
________________ जान्युआरी - २०१८ ६९ बलवंत बेटो तेहनी कूखथी रे, ऊपनो जगि एक रे; मान दीइं मोटा राजवी रे, तेमां घणो य विवेक रे गो० ३ जेठई ते होइ दूबली रे, तोहि वांछइ सहू कोइ रे; भादरवइ ते नारीनइ रे, मान थोडेस्युं होइ रे गो० ४ रूप ते पूर्णिमा सारिखं रे, थोडि मुल्लिं वेचाय रे; उत्तमनइ कुलथी ऊपनी रे, नीच तणी घरि जाय रे गो० ५ ए कुलथी ए ऊपना रे, सात अक्षरचु नाम रे; मेघचंद गणि शीश कहइ रे, ए छइ अरथनो ठाम रे गो० ६ [दूध-दहीं-घी-छाश] (२) हीयालीगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन (१) विबुधजन कुण गुण सहित सोहइ मुदा, (२) तुरीय व[ग्ग] प्रथम अक्षर अछइ जे सदा; (३) करि जेहनई देखि मयणात[तु]रू, (४) जिण [प्रमा]ण कहउ सोभ पामइ वर. १ (५) ---माहि मीठी कहउ कुण लही, (६) नारिनई केहनी ओपमा जगि कही; (७) वदन महिमंडलिई कवण अलंकरइ, (८) सयणनी सोभ कहि कवण माणस हरइ. २ (९) निखर हाटक तणउ कसमल कुण तजइ. (१०) कर वरिइं चंडि सुत कवण वाजिव भजइ; (११) खित्रियवंश माहि कवण मोटउ कहउ, (१२) जोधमाहि जोवतां सुभट कहि कुण लहउ. ३ (१३) चंद्रनउ तात विख्यात जगि कुण अछइ, (१४) नेमिनउ बांधव जीतलउ जिणि पछइ; (१५) रसतणउ स्वाद अनुवाद जाणइ घणउं, (१६) कुण लहइ सार उपगार पूजा पणउ. ४

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