Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७४
कन्या प्राह: २५. पढमखर विण हीइ म राखि,
बीयखर विण नाम मनोहर भाखि; अंतिक्षर [विण] पाड पुरणे, तस उपमा दीजि शशिमुखे. [कमल]
कुमर प्राह : २६. पढमक्षर विण को मत करु,
बीयक्षर विण कां उच्चरु ? अंतखर विण वरीउ रमा, तेहनि लोचनि तुझ उपमा. [हरिणी]
कन्या प्राह : २७. पढमखर विण बालक कांनि,
बीजा विनाणी नविढा मानि; अंतक्षर विणु झीणु सार,
सा कामिनी ग्रहइ अणगार. [लाकडी] २८. पढमक्षर विण प्रथवीकाय,
बीजा विना पंखिणी कहाय; दीरघ विण अंतखर हीण,
सहू वंछई सघले लवुलीण. [सूखडी] २९. विण पग बैसे धरणी, केस विण माथु समारइ,
मुख विण खाइ तंबोल, नयण विण कज्जल सारइ, नउ वा खाइ अन, पाणी न पीयइ न मारी मरि जाइ, न जीवाडी जीवइ, भरतार सेज सदा सूवइ, हासि वयण न वातां करइ, एक नारी इण परि रहइ. [?]
हीयाली गोरी रे गुणवंती गुणि आगली रे, तेहना बापनी जगमां माम रे; बापनो बाप सामो मलइ रे, त्यारे न जइइं गाम रे गो० १ बापना बापस्युं ते मिली रे, त्यारि थयो ते बाप रे; बापस्युं तेणि संगम कीउ रे, तोहि न लागु पाप रे गो० २

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