Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ ६८ अनुसन्धान-७४ कन्या प्राह: २५. पढमखर विण हीइ म राखि, बीयखर विण नाम मनोहर भाखि; अंतिक्षर [विण] पाड पुरणे, तस उपमा दीजि शशिमुखे. [कमल] कुमर प्राह : २६. पढमक्षर विण को मत करु, बीयक्षर विण कां उच्चरु ? अंतखर विण वरीउ रमा, तेहनि लोचनि तुझ उपमा. [हरिणी] कन्या प्राह : २७. पढमखर विण बालक कांनि, बीजा विनाणी नविढा मानि; अंतक्षर विणु झीणु सार, सा कामिनी ग्रहइ अणगार. [लाकडी] २८. पढमक्षर विण प्रथवीकाय, बीजा विना पंखिणी कहाय; दीरघ विण अंतखर हीण, सहू वंछई सघले लवुलीण. [सूखडी] २९. विण पग बैसे धरणी, केस विण माथु समारइ, मुख विण खाइ तंबोल, नयण विण कज्जल सारइ, नउ वा खाइ अन, पाणी न पीयइ न मारी मरि जाइ, न जीवाडी जीवइ, भरतार सेज सदा सूवइ, हासि वयण न वातां करइ, एक नारी इण परि रहइ. [?] हीयाली गोरी रे गुणवंती गुणि आगली रे, तेहना बापनी जगमां माम रे; बापनो बाप सामो मलइ रे, त्यारे न जइइं गाम रे गो० १ बापना बापस्युं ते मिली रे, त्यारि थयो ते बाप रे; बापस्युं तेणि संगम कीउ रे, तोहि न लागु पाप रे गो० २

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86