Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 83
________________ विहंगावलोकन - उपा. भुवनचन्द्र अनुसन्धान-७३नु कद सामान्य रीते होय छे ते करतां अडधुं छे. सम्पादकश्रीनी अन्य कार्यमां व्यस्तताना कारणे आम थयुं हशे - एम मानवू रह्यु. बाकी अप्रगट होय एवी रचनाओ तो ज्ञानभण्डारमा हजी ढगलामोढे छे. _ 'पंचकल्लाण' नामक रचना प्राचीन छे, ताडपत्रीय प्रतिमांथी लेवामां आवी छे. पांच कल्याणकोनुं वर्णन आलङ्कारिक नहीं पण वर्णनप्रधानविगतप्रधान छे, जाणे विगतो नोंधी राखी होय, अहेवाल आपवानो होय ए ढबे थई छे. अन्तमां एक गाथानो क्रमाङ्ग कौंसमां मुक्यो छे ते उचित ज छे. १३४मी गाथामां समाप्तिनी सूचना मळी जाय छे. छेल्ली गाथा महावीरस्वामीना प्रसंगोथी सम्बन्धित छे, विद्वान मुनिए के लिपिकारे पोते समानविषयक समजीने कृतिना अंते लखी-नोंधी राखी छे. एमां 'गब्भाहरणं' शब्दथी गर्भापहार अने जन्म - बन्ने प्रसंगो सूचवी देवाया छे.. ३ स्तोत्रो' परम्परागत शैलीनां स्तोत्रकाव्यो छे. ऋषभदेवस्तोत्रमा संस्कृत सर्वनामोना प्रयोगो गूंथी लेवामां आव्या छे. पोताना शिष्यो । विद्यार्थीओना अभ्यास माटे गुरुओ आवी रचनाओ करता. ___ 'ऋषभदेवसिंहावलोकस्तव'मां यमकनी समृद्धि वाचकने चमत्कृत करे एवी छे. संस्कृतभाषाना व्याकरण, सन्धि, समास अने विपुल शब्दकोशनी मददथी आवा प्रकारनी चित्त चमकावनारी रचनाओ पुष्कळ बनी छे. दरेक चरणना अन्तभागना चार वर्ण (अक्षर) तेनी पछीना चरणना आदि अक्षर तरीके आवता रहे छे तेथी रचना सांकळनी कडीओ जेवी थाय छे. विनयदेवसूरिकृत पहेली रचना 'दानभाषा'मां त्रीजी कडीमां 'नीर न (ज)' - एम सुधारो सूचव्यो छे, परन्तु पछीथी समजायुं के 'ज'नी जरूर नथी, 'न' ज बरोबर छ : सारं जळ कोईने उपकारक बनतुं नथी - एवो अर्थ सुसंगत छे. पृ. २७ पर 'एक पुरुष...' ए हरियालीनी कडी २मां अन्तमां 'भाव'

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