Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७४
जब जाइ अगनिसु नाही, उडत पखेरू वणफल खाई. [?] १६. तरवर एक उत्तंग तास दोइ पेड वखाणू, ।
बडी साख जस वीस, सखर सो वनमें थाणू; दाहोतरसौ लघु साखि साख साख एक ज पल्लव, दस फल लागां तास करै कोकिला किलोरव; कुली तीनसे वीस अगाली, एह वात श्रवणे सुणी;
पूछिजै पढिया पंडिता, केण गयंदा ओ खणी. [?] १७. अछि सबल जुगि एक वसि घटि अंतर वासो,
साथि सुख-दुख सहइ, प्रीति नह छंडइ पासो; भोजन-जल नहु भखइ, प्रथी सा नारी पीयारी; चर्म पांखि चख चलण, मरइ नहीं सा मारी; आथमण थकी साइ ज सबल, हिव ऊगमणे जाइसइ,
उदार सिरोमणी अरथ ओ जसवंत मुहतो जाणस्यइ. [?] १८. हीयाली जे आगलि कहीइ, जे होइ हियइ बलीओ,
एक पुरुष जिमवानइ बइठो, साहमो भाणइ गलीओ. [?] १९. कमन भृमू (?) किंकरोह (?) कवण आवाहन भणीइं,
राजी स्त्री कुण दान अधिक रस केहु सुणीइं; लेख कुसुम कुण गेहभूषण - - सार कहावि, ता सुत कवण चंद मज्झि अंकि आवि अधिक सुहावि; रघुतात कवण भूदेव कुण कवण मंत्र हईडि जपह, सवि बीज नाम आदिख्खरिं ते कवि कहि दिनि दिनि तपह. (अबला, कमल, बलद, रजनी, जलद, लावण्य, लविंग, दीपक, नयन, मदन, हरिण, मलय, दिलीप, गायत्री, जीवन-आ शब्दोना आद्याक्षर मळीने जे नाम थाय ते दिन दिन प्रतपो. नाम बने छ : अकबर
जलालदीन महमदि गाजी.) २०. सूरलक्षण कवण कवण न रहई जलमांहि,
गजगुण गिरुउ कवण काठ कहुनि घट ऊमाहि; कुण दीठइं रिपु बीहई नयननी ओपम ओपइ, हयग्रीव गोरडी मंत्रि कल भूप न कोपइ;

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