Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 71
________________ ६४ ( १ ) गूढा अठोतर सउ खंडडे, दीसइ जासु सरीर । गुणवंती शरि चोटडी, कवणु नारि कहि वीर ॥ [ जपमाला ] फागुण मासि वाउलि वाई, पुरुष पेटि ऊपनि बाली । २. न खांडइ चोखा कहिअइ गोली, इह हिआली कहितां दोहिली ॥ [आंबागोली ] १. ३. भांभरभोलउ बइठउ बारि, तेहनइं परीसी आवइ नारी; चावइ पुण न सकइं ते गिली, नारी आवइ पाछउ वली. [ऊखल ] पाणी पीती दूबली, तरसी माती होइ; कहउ न जोसी पंडिआ, ते गाइ काइसी होइ. [छास] ४. ५. ६. अनुसन्धान-७४ ८. सो समरउ पंथिया, अव आवहु भिक्खा लेहु . [ रामचंद्र ] ७. गिरिसू कंत जु आभरण, तसु भख सुतह जो स्वामि; तासु घरिणी जो संचीयउ, सो नांही इणि गामि (सीतानुं संचित = सत) बारह चांचां सहस पग, पांखां लख अलख; एक पुरुषनी असंभम वात, वांसइ चडइ नइ लाकड सात; दीहं जीवइ रातइ मरइ, तेह पुरुष मइ दीठउ परइ. [फलहउ] शशिवाहण सुत आभरण, रिपुसुत स्वामी जेह; सुघड मिल्यां ही पूछस्यां, पंखी तणी परख [?] छप्पयवाहण तासु सुत, तसु धूअ वाहण जास; जाण-सुजाणां जाणज्यो, सो अम्हचो तुम्ह पास. [?] १०. सूकुं सरवर बहुत जल, कमलां अंत न पार; करण हीयाली पाठवी राजा भोज विचार. [ दर्पण ] ११. कुण मोटउ नर मध्यि उष्णकालि सुखकारण, किमु वंछइ नृपनंद रत्नगर्भा दुहदारण; कुवलय नाणक जीर्ण धरणीतल उदर विदार, गानहेतु कुण अतिहिं समय शीतल चित ठारइ; ୧

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