Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 78
________________ जान्युआरी २०१८ -- वदन जस आठ दुनिया न सहि को वदै, रदन दस पांच ताइ प्रगट राचैः दोइ पग जास दीसै सदा दीपतां, भेटतां दुःख भय भूख भाजै. चपल द्रिग भालियल सोल वारू चवां, जुगल कर जीव सुर सेव सारै; सुगुण जिनहरख ची वीनती सांभलो, धींग नर-नारीचो नाम धारै. ३ ( ४ ) राग : धन्यासी ए तउ एक पुरुष दोइ नारी रे, मइ पेखी पुहवि मंजारी; ते तउ नरि नर सरसी नाथी रे, दोइ चालइ सरसी साथी. [?] .... कहु कहु हरियाली सारी रे, कुण पुरुष कवण ते नारी; दोइ सउकि समाणी दीठी रे, ते तउ कलह करंती मीठी. कहु० २ सिर फूंमतडी फुरकावर रे, नाचंती अवर नचावइ .... जव संपइ थाइ सोइ रे, तव नयणि न जोवइ कोई; गंगाजल सरखी गोरी रे, बिहुं वसवा एक जि ओरी. ते जाण सरिसी गोठि रे, सर अमीय निज होठि; ए तु लाख-कोडि लखवारी रे, पुत्र प्रसवइ बालकुंआरी कहु० भटकंती लाड गहिली रे, बिहुं सरखी छइ साहेली; लावण्यसमय कहइ सोइ रे, लहु जाण हुइ ते जोइ. ७१ (५) ( राग : आसाउरि ) एक पुरुष जगमाहे सारा, दिसि - विदिसि फिरइ साधारा; जोउ चतुरनर ए चतुराई, तेहनुं नाम किस्युं कहु भाई. कहु० ४ कहु० ६ [बे आंख ] जो ० १

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