Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ कवि दयाकुशल गणि रचित श्रीविजयसिंहसूरीश्वर - पदमहोत्सव रास - सं. गणि सुयशचन्द्रविजय मुनि सुजसचन्द्रविजय तपगच्छ - ईश्वर सिंहसूरीश्वर, केरा शिष्य वडेरा ... स्नात्रपूजानी आ पङ्क्ति सांभळिये के तुरन्त ते महापुरुषनी उज्ज्वल प्रतिभा आपणने चोक्कस याद आवे । पूर्वकालना महापुरुषोए पोताना पुण्यथी तथा चारित्रनी शुद्ध परिणतिथी अनेक जीवोना हृदयमां सम्यग् दर्शननां बीजोनुं सफलपणे वावेतर कर्तुं । कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यजी, आ. श्रीसोमसुन्दरसूरिजी आ. श्रीहीरविजयसूरिजी आ. श्रीविजयसेनसूरिजी जेवा केटलाय प्रभावक पुरुषोनां नामो आवा पुण्यपुरुषोनी आगली हरोलमां मूकवा योग्य छे । अहीं आपणे एवा ज एक महापुरुष श्रीविजयसिंहसूरिजीना जीवनचरित्रनो थोडो परिचय प्रस्तुत रासना आधारे करीशुं । कवि दयाकुशलजी ओ हीरविजयसूरिजीनी परम्परामां मुनि मेहना शिष्य पण्डित कल्याणकुशल गणिना शिष्य छे । कवित्वनी साथे तेमनी विद्वत्ता पण अजोड हती । तेथी ज बादशाह जहांगीरे तेमने पोतानी पासे राख्या हता । ते वातना पुरावारूपे सं. १६७४मां बादशाह जहांगीरे विजयदेवसूरिजीने उद्देशी लखेलुं एक फरमान आपणने जोवा मळे छे । कविए लाभोदयरास, पूर्वदेश- चैत्यपरिपाटी-स्तव, त्रेसठ शलाकापुरुष चरित्र विचारगर्भित स्तवन, विजयसिंहसूरि रास जेवी नानी मोटी अनेक कृतिओ रची छे. जाणे कवित्व सहज होय तेवी तेमनी रसाळ - प्रवाहित शैली छे । संस्कृतप्राकृतभाषाना तत्सम के तद्भव शब्दोना अति प्रयोगने त्यजीने सरळ शब्दप्रयोगो द्वारा काव्यने मधुर बनाववामां पण तेमनी अनेरी सिद्धि हशे एवं काव्य वांचता अनुभवाय छे । काव्यमां प्रयोजायेल विविध रागो तथा देशीओनी सूचि पण कविना संगीतशास्त्र परत्वेना विस्तृत बोधने स्पष्ट करे छे । बीजी रीते कहीए तो श्रेष्ठ कविनां बधां ज लक्षणो अहीं जोवा मळे छे । कृतिपरिचय प्रस्तुत कृति विजयसिंहसूरिजीना पदप्रदान - महोत्सवने ध्यानमां लईने लखायेली

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86