Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 61
________________ ५४ अनुसन्धान-७४ अमारि पलइ महोच्छव बहू, गुरुनइ यख्यराज, तुठो कहइ तुम्हे आपयो, कनकविजयनइं राज १३८ सहिर.... तपगछनो दिन दिन उदय, जेहथी चढतइ नूरि, वंछित सिद्धि सही थई, हरख्या श्रीसूरि । १३९ सहिर.... श्रीसंघनी आस्या फली, जिम मेहथी मोर, तिम गुरु म(मे)हुलि पधारतां, हरखइ संघ चकोर १४० सहिर.... ॥ दूहा ॥ राग - श्रीराग ॥ अखात्रीजि आनंद बहू, संघ सहू रंगरोल, दांन मांन दीजई तिहां, बीडां बहू तंबोल १४१ ॥ ढाल - अग्यारमी ॥११ राग - जयतसिरी ॥ फाग धमालनी ॥ श्री जिनवदन निवासिनी ए देशी ॥ रूडो देश ते रायनो, जिहां सदा रंगरोल रे, पृथिवीतल-सुरलोक ए, सहू जन करइ कल्लोल रे १४२ रूडो देश ते रायनो... [आंकणी] सरस सदारस सेलडी, आंबा रायण द्राख रे, दुख दुकाल सुहुणइ नहीं, जन मुखि उत्तम भाख रे १४३ रूडो... जेणइ देशिं बहु जईनना, शिखरबद्ध प्रासाद रे, दंड कलस सोनातणा, करई स्वर्गस्यूं वाद रे १४४ रूडो... जिहां नारी वर पदमिनी, जेणइ देशि वर वेस रे, हींदू-राय कल्याणजी, जिहां नहीं पाप प्रवेश रे १४५ रूडो... वावि सरोवर बहु नदी, वाडी वन आराम रे, सुधन धन नींपजइ बहू, सुखी सहू जिहां गाम रे १४६ रूडो... ॥ दूहा ॥ राग - कानडु ॥ जेणइ देशि ईडर नयर, स्वर्गपुरी सम जेह, डूंगर ऊपरि अति भलो, गढ दृढ दीसइ तेह १४७ जिहां प्रासाद श्रीऋषभनो, बावन शिखरस्यूं रंग, शेजेज तीरथ समोवडई, दीसइ अतिहिं उत्तंग १४८

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