Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
५६
अनुसन्धान-७४
आ ईडर अति उत्तम ठाम, नव खंडि जेहनी मोटी माम,
पूज्य जनम ए गाम १६१ संघ वीनती सफल ते कीजइ, पाट-पटोधर इहां थापीजइ,
मनह मनोरथ सीझइ १६२
॥ दूहा ॥ राग - सामेरी ॥ धर्मविजय उवज्झाय वर, चारित्रविजय उवज्झाय, वाचक पंडित मुनिवरूं, वींनवइ सहू गुरुराय १६३ कल्पवृक्ष सम पूजि तुं, तुं आशा विश्राम, एह वीनती संघनी, कीजइ सफल सुठाम १६४ हींदू राजा सहू अनइं, तो सही पाट थपाई, ईडररायतणुं तिलक, जो पहुचइ तिणइ ठाय १६५ ॥ ढाल - तेरमी ॥१३ धन्यासी ॥ कनककमल पगलां ठवइ ए देशी ॥ सुणियई सहि गुरु तिहां वीनती ए, निज मनि धुरइ विचार,
सार सहूनइं रुचइ ए १६६ तपगछि एह परंपरा ए, पासइ श्रीयुवराज,
___ काज कर[इ ते] सुंदरु ए १६७ योगि जोईनइं थापीइ ए, आपीइ निज पद रंगि,
संघ सहू चित ठरइ ए योतिषी पंडित सहू मिली ए, जोयई ते दिन शुद्धि,
बुद्धि मति केवलइ ए संवत सोल एकासीइ ए, वैशाख सुदि सोमवार,
सार तिथि छठि तिहां ए १७० पुष्यनक्षत्र रवियोगस्यूं ए, वृषभलगन जयकार,
सार दिन मुहूरति ए निरणय करी गुरुराजनई ए, वीनवइ करीय विवेक,
एकमन सहू थई ए १७२ दिनसुद्धि देखी हरखीआ ए, गुरु सहू करई प्रमाण,
आण सहूं शिरि धरइ ए १७३
१६८

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86