Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 65
________________ अनुसन्धान-७४ १८७ १८८ १८९ १९० मुझथी छइ बहु ज्येष्ट, ज्ञान-क्रिया-गुणश्रेष्ठ, थावं तपगछराय, मइं किम भार झलाय जोतां हुं कुण लेखइ, उत्तम आप ऊवेखइं, वाचक मुनि सहू भाखइ, पुण्यवंत दूरि जो नासइ लच्छि न मूंकइ ए संग, अधिक अधिक तस रंग, वांछई पाट अनंत, पणि पांमई पुण्यवंत तपगच्छनी ठकुराई, उदय तुम्हारइ आई, पाट-परंपर वीर, श्रीगुरु साहसधीर ते तुह्मथी अति दीपई, गुणि करी तुह्म कुंण जीपइ, नाठा किमहइ न छूटो, पुण्य प्रकट हूओ मोटो आग्रह किमहइ न मानइं, निसप्रीही तिहां रहइं छांनइ, बहु हठस्यूं गुरु पासि, लावइ अतिहि उल्हासि कोडिगमे नर नारी, देखी सूरति सारी, गुरुनइं ए पद योगि, एम बोलि सहू लोग मुहूरतसमय जणावइं, वास गुरु शिरि ठावई, निज करि निज पद दीधुं, मनवंछित सहू सीधूं धवल मंगल नाद, सुंदरी गाइं सुसादि, गुणीजननई तिहां तोषइ, बहु दत्त देई संतोषइ पूजा नव अंगे कीजई, मणुअ जनम फल लीजइ, · तिहां वाचकपद दोइ, आठ पंडितपद होई इस्या महोत्सव देषइ, जनम गणुं तस लेखइं, साह सहिजू संघ हरषई, मेह तणी परई वरषई १९२ १९३ १९४ १९५ १९६ १९७ ॥ दूहा ॥ राग - सारंग ॥ मनोरथ जे पुण्यवंत करइ, ते सहू चडइ प्रमाण, जोज्यो एणइ दुसमसमई, एहवे सही अहिनाण हरख्या संघ सुगुरु सहू, देव-देवीपरिवार, श्रीविजयसिंघसूरीसरू, नाम सुणी तेणी वार १९८ १९९

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