Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ ६० अनुसन्धान-७४ ॥ दूहा ॥ राग - हूंसेनी ॥ जे जे लाभ तिहां हुआ, कही सकइ ते कुंण, कुमत-मिथ्यामत तिम दल्युं, जिम आटा मांहि लूंण २०७ सिद्धपुरि श्रीगुरु पुहचतइ, लाभ संघ बहु लिद्ध, अनुक्रमि जई जावालपुरि, श्रीगुरु दरिसण किद्ध २०८ हरख हूउ गुरु हिअडलइ, देखि कमाई सीस, उदयवंत ए सही हुस्यइं, श्रीतपगच्छनो ईश २०९ आलोई वृत्तांत सहू, खांमणडा करी सार, प्रसन्नपणइ पूछइ सुगुरु, हूउ ते सुख विहार २१० ॥ ढाल - सोलमी ॥ १६ राग - धवल धन्यासी ॥ फूल कमलनुं वेधीउ तो ए, तथा लेखनी छेहली एहवा रे गुण तुम्ह तणा ए देशी ॥ मरुधर देश पधारिआ तो, श्रीगुरु परमदयाल रे, आनंद-उच्छव बहु करइ तो, सीरोहइं साह तेजपाल रे २११ पुण्यइं वंछित सहू फलइ तो, पुण्यई आदर माम रे, पुण्यपसाइं पामीइं तो, वंछितसुख अभिराम रे २१२ पुण्य... [आंकणी] जालहुर जोधपुरनो धणी तो, मंत्रीमुकुट प्रधान रे, सुश्रावक संघवी श्रीजयमल, जेहनइं गजसिंघनां मांन रे २१३ पुण्यई... श्रीगुरुनई आग्रहइं करी तो, प्रवर प्रतिष्ठा काजि रे, पधरावइ जालहुरपुरइं तो, महा महोत्सवई गुरुराज रे २१४ पुण्यई... गढ दृढ अतिहिं सोहामणो तो, पोढइ पर्वति राजइ रे, संप्रतिराय तणा तिहां तो, प्रासाद सुंदर छाजइ रे २१५ पुण्यइं... जीरण जाणी उद्धर्या तो, जयमल्ल मुहुणति हरिखिइं रे, ध्यन जगमांहिं ते कहुं तो, समई सदा जे परखइ रे २१६ पुण्यइं... बहु नूतन बिंब तेह भरावई, करइं प्रतिष्टा रंगिई रे, देश देशना संघ तेडावई, उल्हट आणी अंगई रे २१७ पुण्यइं...

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86