Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जेणई देशइं वर गाम नयर, नहीं किहिं ऊजाडि, वाटि घाटि भय नांम नहीं, नवि प्रभवइ धाडि नहीं अदेखा मच्छरी, नही नंद्या ढाल, हित वंछइ एक एकनइ, गुणवंत मयाल, कुमत कदाग्रह नहीं अ कदा, सज्जन सुविचारी, त्रिणि काल जिनपूज करइ, उत्तम आचारी श्रावक श्रावी जेणि देशि, बहु गामोगामि, उदय श्रीजिनधर्मनो, दीसइ सहू ठांमि, भइ गुणइ सिद्धांत सुणइं, जे साचा धर्मी, नवतत्वादिक कर्मग्रंथ, समझइ जे मर्मी बहूलां तीरथ जेणि देशि, आबू राणपुर, गुणवंत गोडीचउ जिहां, शिवपुरी जालहुर, बंभणवाडि जिणंदचंद, पूरइ जे आस, वरकाणो फलवधि मंडोर र जीराउलिपास शिखरबद्ध प्रासाद बहू, बहु मुनिजन ठांम, सदा करइ गुरुदेव सेव, जपई अरिहंत नांम, सात खेत्रे भलइ भावस्यूं, वावइ जे वित्त, तीरथयात्रानइ संघ-भगति, करइ परिघल चित्त प्रवर प्रतिष्टा करइ स्नात्र - महोछवि मंडाण, धवल मंगल गीत नादस्यूं, मानइ जिनआंण, हिंदू आणूं जेणि देशि सदा, नित पलइ अमारि, गुणवंत गछनायकतणा, जिहां नित्य विहार
॥ दूहो ॥ राग - मल्हार ॥
सोहई सहिर सोहांमणां, श्रीमरुमंडलमांहि, गुरुजनमथी मेडतुं वर्णवस्यूं उच्छाहि.
२. आ शब्द 'मंडार' माटे प्रयोजायो होय तेम लागे छे.
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