Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 52
________________ जान्युआरी - २०१८ ॥ दूहा ॥ राग सामेरी ॥ स्वामी सुधर्माथी प्रथम, निग्रंथ एहवू नाम, सुस्थित-सुप्रतिबद्धथी, कोटिकगण अभिराम चंद्रसूरिजी चंद्रगण, पनरमइ पाटि प्रसिद्ध, सामंतभद्रसूरि सोलमा, नाम वनवासी किद्ध वडगछ नाम पांत्रीसमइ, पाटि उद्योतनसूरि, संवत नव चउराणुंइ, हूउं ते चढतइ नूरि देस मेवाड आहड नगरिं, सूरी श्रीजगचंद्र संवत बार पंच्यासीइं, तपगछ नामाणंद कौटिकगण नई चंद्रकुल, वैरी शाखा जेह, ए त्रिण्णि जिहां पांमीइ, सुद्ध-परंपर तेह पाट-परंपर सुद्ध जस, सूरि श्रीविजयदेव, पुण्यपसाइं पांमीइं, ए सुविहित गुरुसेव सुधर्मस्वामिथी साठिमई, पाटइं सुद्धाचार, तास पटोधर वर्णवउं, गुणमणितणुं भंडार आचारजि विजयसिंघजी, देस कवण ? कुण गाम ?, मात-पिता कुण गोत्र तस ? कहिस्युं सहू अभिरांम ४५ रयण रयणायरि पांगीइं, पणि छिल्लरई न होय, उतपति उत्तम नरतणी, उत्तम कुलि तूं जोय ४६ ॥ ढाल - चउथी ॥ ४ राग - भूपाल ॥ श्रीजीराउलि पासनाह ए देसी ॥ जंबूद्वीपमां भरत क्षेत्र, मरुमंडल देश, आर्य सदा न्याय नीति रीति, नही पाप प्रवेश, चोर चरड नही चाडीआ, नहीं मच्छर-रोग, दान मांन उपगार बहू, षट रितुना भोग । माहो-मांहिं जिहां संप घणा, घणां आदर मांन, 'शत्रुकार घर घर प्रति, बहूलां अन-पान, १. सत्रागार

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