Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 50
________________ आ २०१८ २ 3 श्रीमुनिसुंदर " रत्नशेखर र गुरू, लक्ष्मीसागरसूरि + ३ भाण रे, सुमतिसाधुसूरि-'"पाटप्रभावक, हेमविमल " वरनाण रे १८ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । जे जगनइ हूओ आणंदकारी, जस गुणनो नही पार रे, सुविहित-साधु-शिरोमणि वंदो, श्रीआणंदविमल गणधार रे, १९ १६ ४३ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । श्रीविजयदानसूरीश्वर महिमा, त्रिभुवनमांहि प्रसिद्ध रे, श्रीहीरविजयसूरीश्वर" हीरो, सहीअ विधाता किद्ध रे २० धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । साहि अकबर जेणई प्रतिबोध्यो, चिहुं खंडि राख्यं नाम रे, धन धन साह कुंरानंद नाथी, वली वली करुं प्रणाम रे २१ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । गौअ तणो वध जेणइ निवार्यउं, शत्रुंज मुगतो किद्ध रे, जगाति जीजीउ कर मूकावी, सब जगि हूउ प्रसिद्ध रे २२ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । एक जीभि कुण सकइ वखाणी, हीर तणा गुण जेह रे, अखंड अमारि पलइ चिहु खंडइ, तो हेमसूरि सही एह रे २३ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । परतखिदेव सेव सही करता, अतिसय महिमावंत रे, अंग रोमंचइ जस गुण सुणतां, भाग्यवंत भगवंत रे २४ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । ॥ दूहा ॥ राग वसंत ॥ विजयसेनसूरि तास पटि, सूरिसवाई जेह, सुधर्म जंबू साचलो, जस गुणनो नहि छेह २५ ॥ ढाल - बीजी ॥ २ राग - देसाख ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी ए देशी ॥ विद्याइं सुरगुरु सम राजइ, पंच सुमति त्रिणि गुपति विराजइ, न्यान दरिसन चारित्र सोहावइ, जस दरिसन चित आणंद पावइ २६

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