Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 48
________________ जान्युआरी - २०१८ ४१ पण उजवायो । महोत्सवमां श्रीसंघे करेली पहेरामणी, दानादिनी विगत ते वखतनी व्यावहारिक रीतिनुं उदाहरण छे । पदमहोत्सव कर्या पछीनी तुरंतनी रास रच्यानी संवत् कृतिनुं ऐतिहासिक महत्त्व बतावे छे । छेल्ली ढाळमां कविए पोतानी गुरुपरंपरानो उल्लेख करी रास- समापन कर्यु छे । कृतिनुं लेखन प्रायः कर्तानी ज परम्परामां थयेला सूरकुशल गणि द्वारा सं. १६८६ मां थयुं छे । लेखन एकंदरे सुन्दर छ । प्रत आपनार अनामी व्यक्तिनो आभार चोक्कस मानीए छीए । राग-देशाख वेलाउल ॥ ॥ धुरि दूहा ॥ सरस वचनरस वरसती, सरसति भगवति देवि, तुझ प्रसादि गुरुगुण थुगुं, हिअडइ हरख धरेवि मात पिता गुरु देवता, गुरु गति-मतिदातार, गुरु विण भवजलनिधि तणु, कवण उतारइ पार अनंत तित्थंकर जे हुआ, होसि वलीअ अनंत, ते सहू सुगुरू पसाउलइ, गुरुगुणनो नहीं अंत त्रिभुवनमां जे जे कला, गुरु विण ते नवि कोए, जिम जल विण सब बीजनो, उदभव कदीअ न होए सुद्ध परंपर सुद्ध गुरु, पुण्यइ लब्भइ जेह, श्रीतपगछ रयाणयरू, जिहां सहू लहीइ तेह एक(६१)सठिमइ पाटिइं प्रगट, आचारजि विजयसिंघ, महामुनीश्वर तेहना, गुण गावा मुझ रंगि ॥ ढाल-पहिली ॥ राग-आसाउरी ॥ जिनवरस्युं मेरो चित लीनो ए देसी ॥ सुद्ध-परंपर तेह कहीस्यु, करवा समकित सुद्धि रे, अहनिसि नाम जपंतां होवइ, आतम निरमल बुद्धि रे ७ धन्य धन्य श्रीतपगछ रयणायर, सुद्ध परंपर जास रे, वीर जिणंद थकीअ पटोधर, थुणस्युं धरिअ उल्हास रे ८ धन्य धन्य श्रीतपगच्छ० । आंकणी ।

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