Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी २०१८
ज ढाळमां सूरिजीना गोत्रनी, दादा-दादीनां नामोनी अने तेमना आदर्शोनी विगतो पण छे । त्यार पछी छठ्ठी ढाळना दूहामां साह मांडणना पुत्रपरिवारनी अने ढाळमां पुत्रवधू तथा पौत्र परिवारनां नामोनी नोंधो छे । ए सिवाय साह मांडणना अनशन पूर्वकना स्वर्गगमननी, मातानी कुटुंबे करेली सेवानी, तेमज पिताना मृत्युथी वैराग्यवासित थयेला नाथूनी धर्म आराधनानी मुख्य-मुख्य वातो छे ।
३९
हवेनी ७मी ढाळमां कविए कोई जोषीनी छटाथी आलेखेलुं कर्मचंद्रनी देहयष्टिनुं, जन्मसमये रहेला ग्रहमाननुं तेमज तेना फळनुं कथन जोवा मळे छे । आ विषयमा पण कविना ज्ञाननी ऊंडाइ पद्यो वांचतां अनुभवाय छे। तो आठमी ढाळमां जीवननी अनित्यता, धन-यौवननी चंचळता अने चारित्रनी सार्थकताना भावो वर्णववा रचायेला साह नाथूनां पद्यो खरेखर सुन्दर छे । तेमांय १०९, ११२ तेमज ११७ ए पद्यो हृदयने विशेषे स्पर्शे तेवां छे । आ ज ढाळना अन्तमां नाथूनी साथे विजयसेनसूरिजी पासे दीक्षित थनार पत्नी नायकदे अने तेना पुत्रनी दीक्षानी वात एक ऐतिहासिक विगत छे ।
उपरनी वातना सन्दर्भमां ९मी ढाळना दूहाओमां कविए नूतन दीक्षितोनां नामो स्पष्ट कर्यां छे । जेमां साह नाथू ते नेमविजय, केसव ते कीर्तिरत्न, कर्मचंद ते कनकविजय, श्राविका नायकदे ते साध्वी नयश्री । अहीं पांचमुं जे कुंवरविजय नाम छे ते अंगे विचारता एवं लागे के आगल ११९मा पद्यमां जे 'भ्राता' शब्द प्रयोज्यो छे ते तेमना (नाथूना) मोटा भाई सूरताण माटे छे. जेओनुं संयमी अवस्थानुं नाम कुंवरविजय रखायुं छे । वळी आ ज ढाळना आगळना ३ पद्योमां मुनि नेमविजय तथा बे बांधवोनी (अहीं बे बांधव शब्द नाथूना २ दीक्षित पुत्रोने अनुलक्षी वापर्यो छे) संयमप्रीतिनी वात कवि वडे आलेखाई छे तो छेल्ला ३ पद्योमां सं. १६७०मां योगोद्वहन करवा पूर्वक विजयसेनसूरिजी द्वारा अपायेला पंडित पदनी, तेमज सं. १६७६मां पाटणनगरे श्राविका लालीना प्रतिष्ठा महोत्सवमां विजयदेवसूरिजीना हाथे अपायेल वाचक पदनी ऐतिहासिक माहिती अपाई छे.
पदप्रदानना घटना-प्रसंगोना क्रममां ढाळ १० मी सौथी महत्त्वपूर्ण छे । पोतानी पछी पोताना पदनो भार कोने सोंपवो ए माटे सुयोग्य व्यक्तिनी पसंदगी करवा माटे विजयदेवसूरिजी साबलीगामे सं. १६७८ ( जैन परम्पराना इतिहास प्रमाणे सं. १६७६)मां मंत्री पदमसीनी विनंतीथी सूरिमन्त्रनुं ध्यान करवा बेठा । मन्त्र - आराधनाना आ अवसरे सूरिजीए केवा - केवा तप त्याग कर्या तेनुं अने श्रीसंघे पण सूरिजीने कई ते पीठबळ पूरुं पाड्यं तेनी सुन्दर नोंध कविए अहीं आलेखी छे । ध्याननी फळश्रुति रूपे यक्षराज गणिपिटक द्वारा कनकविजयजीने पदयोग्य सूचव्यानी विगत विशेष

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