Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०१८
५१
१०५ ।।
जोसी जूइ जनमविचार, कुंअर ऊपनो कुलशृंगार, कइ राजा कइ गच्छाधीश, पुण्यवंत पूरइ सकल जगीश दुरगति दुख दारिद्र चूरस्यइ, मनह मनोरथ सहू पूरस्यई, जनमपत्री जोतां अतिरंग, सज्जन पंडितना ठरइ अंग
१०६
॥ दूहा ॥ राग - परदु ॥ वाधइ कंअर कुलतिलो, बीअ तणो जिम चंद, सकल कलाई दीपतो, तिहुअण-नयणाणंद १०७
॥ ढाल - आठमी ॥ ८ राग - अधरस परजीउ ॥ सुग्रीवनयर सोहांमणुजी ए देशी ॥ कुटुंब सहूनई वीनवीइ जी, नाथू साह सुचंग, यौवन धन सहू कारिमूं जी, कहु स्यो तेहस्युं रंग १०८ सुणु सहू ए संसार असार, दुरगति पडतां ऊधरई जी,
धर्म तणो आधार सुणु सहू... आंकणी जिम वीजली जल-बिंदुउ जी, जिम संध्या- राग, तिम सहू देखी कारिमूं जी, आणो मनि वइराग १०९ भवसमुद्रमां बूडतां जी, चारित्र नाव समान, तेणइ बइसी भविजन तरइ जी, आउलां व्रत पचखाण ११० जो आपण नवि मूंकीइ जी, तोहइ थिर न रहाई, एहवू जांणी आदरो जी, साचो धर्म सहाय १११ सुणु सहू... आउखू पूरुं थइ जी, राखइ नहीं खिण एक, तो सही पहिलां चेतीइ जी, उत्तम एह विवेक ११२ सुणु सहू... ए दोलति दिन च्यारनी जी, भूलइ देखि गमार, जलनिधि-जलकल्लोल-जिउं जी, आवत जात न वार ११३ बालपणि रामति गयो जी, गयुं यौवन उनमत्ति, वडपण देह परवश थयुं जी, पुण्य विण तुझ कुण गत्ति ११४ सुणु सहू... यौवन धन सुख संपदा जी, कोए न आवइ संगि, तो तेस्यूं माया किसी जी, सुख दुख सहिवू अंगि ११५ सुणु सहू...

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