Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 55
________________ ४८ श्रीओसवंसी तिहां वसइ, श्रावकधुरि लीह रे, चतुरगोत्र चोरवाडीआं, जपइ जगत्र जस जीह रे मोटो मांडण साह ते, विवहारी - शिरताज रे, धर्मधुरंधर साचलो, करइ पुण्यना काज रे, पूजइ श्रीजिनराज रे ६८ मोहनगारुं... ६९ मोहनगारुं... ७१ मोहनगारुं.... स्वामिअवच्छल नित करइ, दीनं दान सुपात्र रे, साधु साधवी भलइ भावस्यूं, पोषइ गुणवंत गात्र रे. ७० मोहनगारुं... सफल फूलां घरणी सती, गुणवती अ सुरंग रे, परतखि जांणुं अ पदमिनी, धरमी - जन-संग रे महिअलि जस महिमा घणो, जाणइ शास्त्रविचार रे, त्रिकाल नित जिन पूजीइ, कीजइ पर उपगार रे वस्त्र - पात्र - पुस्तक तणां, चतुरविध आहार रे, देतां कर खंचई नहीं, पोषइ सुद्ध अणगार रे, वली शत्रूअकार रे ७२ मोहनगारुं.... अनुसन्धान-७४ ७३ मोहनगारुं... ॥ दूहो ॥ राग - परजीओ ॥ सफल करइ निज जनमनई, तीरथ यात्र अनेक, गिरिनारि श्रीशेज प्रमुख, भेटइं वडइ विवेक सुत दोए गुणवंत तस, सुरताण नई नथमल्ल, जाणुं धर्मधुराधणी, दुज्जण - जण - - शिरि सल्ल ७५ ७४ ॥ ढाल - छठ्ठी ॥ ६ राग - कालहरू ॥ तुंगिआगिरि शिखरि सोहइ - ए देशी ॥ मात दाता तात उल्हासदाता, विख्याता गुणवंत रे, पंडित पासइ पढ्या विद्या, हूआ यौवनवंत रे, मेधावी माहंत रे, सरल सुंदर संत रे करु सुअणा पुण्यकरणी, जेहथी नव निद्ध रे, सुख - संतति सकल संपद, हुई वंछित सिद्धि रे लघुबंधव जेह नाथू, उदय तास अपार रे, नायकदे जसी सती सीता, रूपि रति अनुकार रे ७६ ७७ ७८ करु सुअणा... करु सुअणा...

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