Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 43
________________ ३६ आपे फल दीइ अक्षयपणुं, नवण करंता निर्मल घणुं । थूइ करतां पदवी इंद्र, जेहन पाय नमइ सुर-वृंद ||९|| नाटक - थूइ करतां जोइ, गणधर - तीर्थंकर पद होइ । प्रभाति पूजइ जिनराय, निशा तणुं तस पातक जाइ ॥१०॥ मध्य-दिवस जे पूजा करइ, जनमतणुं पातक उपहर । संध्या पूजइ जिन आप, सात जनमनां टालइ पाप ॥११॥ जे जिन पूजइ त्रिणि काल, त्रीजइ भवि सिव- गति वृद्ध - बाल | उत्कृष्टा भव सात नई आठ, ते नर लहइ मुगतिनी वाट ॥१२॥ एकवीस सतर अष्ट प्रकार, पंचम त्रिणि भेद पणि सार । एणी परि जे जिन-पूजा करइ, ऋषभदास कहइ ते नर तरइ ||१३|| ॥ इति स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ गणि रत्नविजयेन लखीतं संवत् १७०९ वर्षे श्रावण वदि १५ दिने । लिखितं बर्हाणपुरे ॥ * * * अनुसन्धान-७४

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