Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ जान्युआरी - २०१८ २५ मेरुशिखर जिम सुरवर, जिनवर न्हवण अमांन । करता वरता निजगुण-समकित-वृद्धि-निदान ॥३॥ श्लोकः हर्ष भरी अपच्छरावृंद आवै, स्नात्र करि एम आसीस भावै । जिहां लगि सुरगिरि जंबुदीवो, अमतणा साधु जीवानुजीवो ॥४॥ काव्यः विमलकेवलभासनभास्करं जगतजन्तुमहोदयकारणं । जिनवरं बहुमानजलौघतः शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥५॥ है ही परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥१॥ इति ॥ अथ चंदन ॥ दहाः बावनाचंदन कुंकमा, मृगमद नै घनसार । जिनतनु ले तसु टलें, मोह संताप विकार ॥१॥ ढालः सकल संताप निवारण, वा(ठा?)रण सहु भवि चित्त । परम अनि(नी)हा अरिहा-तनु चरचौ भवि नित्त ॥२॥ निजरूपे उपयोगी(ग)-धारी जिन गुणगेह । भावचंदन सहु भावथी, टालै दूर(रि)त अच्छेह ॥३॥ श्लोकः जिनतनु चरचतां सकल नांकी, कहै कुग्गता उष्णता आज म्हाकी। सफल अनिमेषता आज म्हाकी, भव्यता अमतणी आज पाकी ॥४॥ काव्यः सकलमोहति(त)मिश्रविनाशनं, परमशीतलभावयुतं जिनम् । विनयकुंकम-दर्शनचन्दनैः, सहजतत्त्वविकाशकृता(ते)ऽर्चये ॥५॥ में ही परमात्म० चन्दनं यजामहे स्वाहा ॥२॥ अथ फूल ॥ दूहाः शतपत्री वरमोगरो, चंपक जाय गुलाब । केतकी दमणो बोलसिरी, पूजो जिन भरी छाब ॥१॥ ढालः अमल अखंडित विकसित, शुभ सुमनी घन जाति । लाखिणो टोडर ठवौ, आंगी रचौ बहु भांति ॥२॥ गुणकुसुमै निज आतम, मंडित करवा भव्य । गुणरागी जडत्यागी, पुष्प चढावो नित्य ॥३॥

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