Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 35
________________ अनुसन्धान-७४ अथ फलपूजा ॥ दूहाः पक्व विजोरा जिनकरौ(रै), ठवतां शिवपद देई । सरस मधुर सुरफलै(ल)गणै, इह जिन भेट करेय ॥१॥ ढालः श्रीफल कदली सुरंगा, नारंगा आंबा सार । अंजीर वंजीर दाडिम, करणा षट बीज स्फार ॥२॥ मधुर सुस्वादिक उत्तम लोक आनंदे तजेह । वरण गंधाकर मणी बहुफल ढोके तेह ।।३।। श्लोकः फलभर पूजतां जगतस्वामि, मनुजगति वेल है सफल पांमी । सकल मुनि ध्येयगतिभेद रंग, ध्यावतां सफल समाप्तिप्रसंगै ॥४|| काव्यः कटुककर्मविपाकविनाशनं, सरसपक्वफलव्रजढौकनं । विहितमोक्षकफलस्य प्रभोः पुरः, कुरुत सिद्धिफलाय महाजनाः ।।५।। है ही परमात्मने० फलं यजामहे स्वाहा ॥८॥ अथ अर्घः ॥ दूहाः इम अडविधी जिन पूजतां, विरचै जे थिर चित्त । मानव भव सफलौ करै, वाधै समकित चित्त ॥१॥ अगणित गुणगण आगर, नागरवंदितपाय । श्रुतधारी उपगारी, श्रीज्ञानसागर उवझाय ॥२॥ तास चरणपंकजसेवक, मधुकर परि लयलीन । श्रीजिनपूजा गाई, जिनवाणीरसपीन ॥३॥ संवत गुणगणअचलइंदु, हर्ष भरी गाईयो श्रीजिनेंदु । तास फल सुकृतथी सकल प्राणी, लहौ ज्ञानउद्योत शिवनीशानी ।।४।। काव्यः इति जिनवरवृन्दं भक्तितः पूजयन्ति सकलगुणनिधानं देवचन्द्रं स्तुवन्ति । प्रतिदिवसमनन्तः तत्त्वमुद्भावयन्ति परमसहजरूपं मोक्षलक्ष्यं श्रवन्ति ।।५।। न ही परमात्मने अनन्तानन्तशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय अर्घ पामते (?) स्वाहा ।।९।। ढालः

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