Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ जान्युआरी - २०१८ ३१ नोकसाय नव सोल कसाया, पंचवीस बीयाल मिलाया, जोग पनर गुणि आणे ॥३॥ साचउं [१] जूठउं [२] जूठउं साचउं [३], नही साचउं जूठउं मन चउथउं [४], वचन च्यारि इम आठो । ऊदारिक ऊदारिक-मीसं, तिम वेकुच्चि अहारक मीसं, कम्मण ए सत पाठो ||४|| यतः उक्तं च - अभिगहिअ-मणभिगहिआ-भिनिवेसिअ-संसइअ-मणाभोगं । पण मिच्छ बार अविरई, मणकरणानिअम छजीअवहो ॥५॥ नव सोल कसाया पनर, जोग इअ उत्तरा उ सगवन्ना । इग चउ पण ति गुणेसुं, चउ-ति-दु-इगपच्चओ बंधो ॥६॥ ॥ ढाल ॥ आहारक-दुग विणु पुण जाणइ, हेतु पंचावन धुरि गुणठाणइ, मिथ्या पंचह छेदो । आहारक-दुग पण मिथ्या विणु, हेतु पंचास हुइ दूजइ गुणु, अण-कसाय-चउ भेदो ||७|| मिथ्या पण अण च्यारि कसाया, मीस जोग तह तीनग गाया, हारक कम्मण जाणे । चउदह विण त्रीजइ गुणठाणि, बंध-हेतु त्रितालह जाणइ, छेद नही मनि आणे ॥८॥ च्यार कषाय अणंताबंधी, पंचह मिच्छ-मती नवि संधी, हारक-दुग इग्यारो । एह विना अविरति छइताली, सात विच्छेद लीउ संनाली, बितीय कसाय च्यारो ॥९॥ ॥ भाषा ॥ अविरती त्रसनी रहइ सीस, कम्मणं च ऊदारिक-मीस । सात छेद इम चउ गुणठाणइ, मिश्र काल करिइ नहीं जाणइ ॥१०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86