Book Title: Anusandhan 2018 04 SrNo 74
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०१८
३१
नोकसाय नव सोल कसाया, पंचवीस बीयाल मिलाया,
जोग पनर गुणि आणे ॥३॥ साचउं [१] जूठउं [२] जूठउं साचउं [३],
नही साचउं जूठउं मन चउथउं [४],
वचन च्यारि इम आठो । ऊदारिक ऊदारिक-मीसं, तिम वेकुच्चि अहारक मीसं,
कम्मण ए सत पाठो ||४|| यतः उक्तं च - अभिगहिअ-मणभिगहिआ-भिनिवेसिअ-संसइअ-मणाभोगं । पण मिच्छ बार अविरई, मणकरणानिअम छजीअवहो ॥५॥ नव सोल कसाया पनर, जोग इअ उत्तरा उ सगवन्ना । इग चउ पण ति गुणेसुं, चउ-ति-दु-इगपच्चओ बंधो ॥६॥
॥ ढाल ॥ आहारक-दुग विणु पुण जाणइ, हेतु पंचावन धुरि गुणठाणइ,
मिथ्या पंचह छेदो । आहारक-दुग पण मिथ्या विणु, हेतु पंचास हुइ दूजइ गुणु,
अण-कसाय-चउ भेदो ||७|| मिथ्या पण अण च्यारि कसाया, मीस जोग तह तीनग गाया,
हारक कम्मण जाणे । चउदह विण त्रीजइ गुणठाणि, बंध-हेतु त्रितालह जाणइ,
छेद नही मनि आणे ॥८॥ च्यार कषाय अणंताबंधी, पंचह मिच्छ-मती नवि संधी,
हारक-दुग इग्यारो । एह विना अविरति छइताली, सात विच्छेद लीउ संनाली,
बितीय कसाय च्यारो ॥९॥
॥ भाषा ॥ अविरती त्रसनी रहइ सीस, कम्मणं च ऊदारिक-मीस । सात छेद इम चउ गुणठाणइ, मिश्र काल करिइ नहीं जाणइ ॥१०॥

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